डॉ. योगिता सिंह राठौड़
परिवार किसी भी व्यक्ति के जीवन की सबसे पहली संस्था होती है, जहाँ वह जन्म लेने के बाद सबसे पहले जीवन जीने की कला सीखता है। यह केवल खून के रिश्तों का समूह नहीं, बल्कि एक ऐसी पाठशाला है जहाँ मनुष्य का चरित्र, संस्कार, आचरण और मूलभूत सामाजिक मूल्य विकसित होते हैं। इसीलिए यह कहना अनुचित नहीं होगा कि परिवार समाज की पहली पाठशाला है और सबसे करीबी सुरक्षा-कवच होता है। इसीलिए हर वर्ष 15 मई को विश्व परिवार दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य पारिवारिक मूल्यों, एकता, और सामाजिक स्थिरता की अहमियत को रेखांकित करना है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि परिवार सिर्फ खून के रिश्तों का नाम नहीं, बल्कि वह मजबूत डोर है जो प्रेम, समर्पण, समझदारी और सहयोग से बुनी जाती है। जब परिवार मजबूत होता है, तो व्यक्ति मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक रूप से भी सशक्त होता है। एक मजबूत परिवार ना केवल व्यक्तियों को जोड़ता है, बल्कि पूरे समाज को स्थायित्व प्रदान करता है। इस अवसर पर हमें अपने रिश्तों की समीक्षा कर उन्हें और भी मजबूत बनाने का प्रयास करना चाहिए।
परिवार में मिलने वाले संस्कार
बचपन में माता-पिता और दादा-दादी या अन्य परिजन जो कुछ सिखाते हैं, वही जीवन भर हमारे साथ रहता है। सम्मान करना, सहानुभूति रखना, बड़ों की बात मानना, छोटों से स्नेह करना, सही और गलत में भेद करना—ये सभी गुण हम सबसे पहले अपने परिवार से ही सीखते हैं। ये शिक्षा किसी विद्यालय में नहीं मिलती, बल्कि घर का वातावरण ही इसका सबसे बड़ा स्रोत होता है।
सामाजिक जीवन की नींव
परिवार न केवल भावनात्मक समर्थन देता है, बल्कि सामाजिक जीवन की नींव भी तैयार करता है। जब कोई बच्चा अपने परिवार में जिम्मेदारी निभाना सीखता है, तभी वह समाज में एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में खड़ा हो पाता है। परिवार हमें समाज के नियम, परंपराएं, संस्कृति और आचार-विचार सिखाता है, जो आगे चलकर हमारे सामाजिक व्यवहार को प्रभावित करता है।
आपसी रिश्तों की समझ
परिवार में रहकर हम रिश्तों को समझते हैं, निभाते हैं और समय के साथ उन्हें मजबूत बनाते हैं। यह समझ हमें समाज में दोस्ती, सहयोग और मानवता जैसे मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देती है। जब परिवार में आपसी प्रेम, सहयोग और सामंजस्य होता है, तो समाज में भी वही भावनाएं परिलक्षित होती हैं।
बदलते समय में परिवार की भूमिका
आधुनिक जीवनशैली, व्यस्त दिनचर्या और तकनीकी उपकरणों ने हमारे बीच संवाद को कम कर दिया है। जहां पहले खाने की मेज़ पर पूरे परिवार का जुटना आम बात थी, आज वहीं मोबाइल स्क्रीन और डिजिटल व्यस्तता ने पारिवारिक संवाद को सीमित कर दिया है। इन परिस्थितियों में विश्व परिवार दिवस हमें रुककर यह सोचने का अवसर देता है कि क्या हम अपने रिश्तों के लिए समय निकाल पा रहे हैं? आज के व्यस्त और तकनीकी युग में संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवारों ने ले ली है, जिससे परिवारों की पारंपरिक शिक्षा और भावनात्मक जुड़ाव में कमी आई है। इसके बावजूद, परिवार की भूमिका कम नहीं हुई है। अब भी बच्चे सबसे पहले अपने घर से ही जीवन के मूल्य सीखते हैं। यह आवश्यक हो गया है कि हम परिवार को एक मजबूत, सकारात्मक और नैतिक वातावरण प्रदान करें ताकि आने वाली पीढ़ी एक बेहतर समाज का निर्माण कर सके।
यह दिन क्यों है महत्वपूर्ण?
विश्व परिवार दिवस केवल एक प्रतीकात्मक दिन नहीं, बल्कि आत्ममंथन और बदलाव का अवसर है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि रिश्ते समय और प्रयास की माँग करते हैं। बातचीत, समय साझा करना, एक-दूसरे की भावनाओं को समझना—ये सभी छोटी-छोटी बातें रिश्तों को मज़बूत बनाती हैं। यही दिन हमें प्रेरित करता है कि हम अपनी प्राथमिकताओं पर विचार करें और परिवार के साथ बिताए समय को महत्व दें।
रिश्तों की डोर को कैसे मजबूत करें?
1. संवाद बनाए रखें: खुलकर बात करना रिश्तों की बुनियाद होती है। अपने विचार, भावनाएं और समस्याएं परिवार के सदस्यों से साझा करें।
2. एक-दूसरे के लिए समय निकालें: चाहे वह साथ खाना खाना हो या शाम की चाय पर बातचीत, ये पल रिश्तों को गहरा बनाते हैं।
3. सहयोग और समझदारी बढ़ाएँ: हर सदस्य की भावनाओं का सम्मान करें और सहयोग की भावना विकसित करें।
4. संयुक्त निर्णय लें: परिवार के निर्णय मिलजुल कर लेने से जुड़ाव और जिम्मेदारी की भावना बढ़ती है।
विश्व परिवार दिवस हमें यह अवसर देता है कि हम अपने रिश्तों की डोर को फिर से कसें, उसे समय, समझ और स्नेह से और भी मजबूत बनाएं। एक खुशहाल और मजबूत परिवार ही एक स्वस्थ, सशक्त समाज की नींव होता है। अतः इस दिन हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम न केवल अपने परिवार को समय देंगे, बल्कि उसे अपने जीवन की प्राथमिकता भी बनाएंगे। संक्षेप में, परिवार ही वह प्राथमिक स्थान है जहाँ जीवन की असली शिक्षा शुरू होती है। यह हमारे चरित्र निर्माण की प्रयोगशाला है, जहाँ सिखाए गए पाठ जीवन भर मार्गदर्शन करते हैं। इसलिए, हमें अपने परिवार को सिर्फ एक भावनात्मक केंद्र नहीं, बल्कि एक नैतिक और सामाजिक पाठशाला के रूप में भी देखना चाहिए और इसे सशक्त बनाने का प्रयास करना चाहिए।
लेखक के ये अपने विचार हैं।
प्राचार्य
माँ नर्मदा कॉलेज ऑफ एजुकेशन धामनोद
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