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सिंदूर प्रतीक है शौर्य, प्रेम और त्याग का

प्रकाश श्रीवास्तव

पाकिस्तान ने 22 अक्टूबर 1947 में जब हजारों कबाइलियों को कश्मीर पर कब्जा करने भेजा तभी से उसकी मंशा स्पष्ट थी उस समय भी अगर नेहरू जी इस समस्या को लेकर यू एन में जाने की जगह भारतीय सेना को ही हल कर लेने देते तो शायद आतंकवाद नाम की कोई समस्या ही नहीं होती।

पहली बार आतंकवाद की शुरुआत अस्सी के दशक में हुई थी उस समय भी जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने अपने मंसूबे स्पष्ट कर दिए थे, पाकिस्तानी सेना और आई एस आई के संबंध तो जग जाहिर है, पाकिस्तानी सेना ने कवर दे कर आतंकियों को कई बार घुसपैठ कराई। उस समय भी मानवाधिकार आयोग, पूर्ववर्ती सरकारें और हमारे ख्यातनाम वकील भी आतंकियों के हित में नरम रुख ही अपनाते रहे। सेना के तो एक तरह से हाथ ही बांध दिए गए थे। तत्कालीन मीडिया में कश्मीर के आतंकियों को अलगाववादी या फिर उग्रवादी ही संबोधित किया जाता था बल्कि इन्हें भटके हुए नौजवान कह कर सिर्फ सेना का मनोबल गिराया जाता था क्योंकि सेना के किसी भी जवान पर हाथ उठा लेना या सेना के वाहनों पर पथराव तो इन भटके हुओं का शगल हुआ करता था।

कितनी ही बहनों की आस, कितनी माओं के दुलारे, कितने ही परिवार के सहारे छीन कर, कितनी ही मांगों से सिंदूर और कितने ही बच्चों के सर से पिता का साया हटा कर ये क्रूर आतंकवादी राक्षसी अट्टहास किया करते थे और इनकी कायरता को इनके पीछे पाकिस्तानी गुफाओं में छुप छुप कर बैठे महाकायर बहादुरी का तमगा पहनाते नहीं थकते थे। लेकिन मेजर गोगोई के नेतृत्व वाली टुकड़ी ने जब एक पत्थरबाज को जीप के आगे बांध कर मानव ढाल बना कर घुमाया और तत्कालीन सरकार ने मेजर को जिस तरह से सम्मानित किया उससे जवानों का मनोबल बढ़ा। वोही सरकार आज भी है और सेना का मनोबल सर्वोच्च है। पहलगाम की कायराना हरकत एक सोची समझी पाकिस्तानी साजिश थी आतंकियों ने धर्म पूछ कर मारा जिससे भारत में हिंदू मुस्लिम विवाद हो दंगे हों जबकि वहां एक ईसाई परिवार को भी उजाड़ दिया था इसका मतलब यह है कि आतंकी सिर्फ इंसानियत को मारने आए थे जो ये पूरे विश्व में कर रहे हैं। ये ऑपरेशन राखी हो सकता था, दुलारा हो सकता था या साया भी लेकिन सिंदूर एक प्रतीक है, शौर्य का प्रेम का और त्याग का, जब आग की लपटें सिंदूरी होती हैं तो उनमें सब कुछ भस्म करने शक्ति और सामर्थ्य होता है। यही आग हर हिंदुस्तानी के हृदय में जल उठी है वर्तमान सरकार की इच्छा शक्ति और संकल्प शक्ति ने इसे दावानल का रूप दे दिया है और ये अब तभी शांत होगा जब यह आतंकवाद और उसके सीमापार सहयोगियों को पूरी तरह भस्म ना कर दे।

लेखक के ये अपने विचार हैं।

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