डॉ. योगिता सिंह राठौड़
जब भी हम ममता, प्रेम और त्याग की बात करते हैं, तो प्रायः माँ का नाम सबसे पहले आता है। परंतु एक ऐसा व्यक्तित्व भी होता है जो बिना कहे, बिना दिखावे के, अपने परिवार के लिए दिन-रात समर्पित रहता है — वह हैं पिता। पिता वह स्तंभ हैं, जिन पर पूरे परिवार की नींव टिकी होती है। वे कम बोलते हैं, परंतु उनके हर कार्य में अपार प्रेम छिपा होता है। उनका प्यार शायद उतना मुखर नहीं होता जितना माँ का, पर उसका प्रभाव उतना ही गहरा और स्थायी होता है। पिता की भूमिका केवल एक पालनकर्ता की नहीं होती, बल्कि वे शिक्षक, मार्गदर्शक, और सबसे बढ़कर एक आदर्श होते हैं। वे अपने बच्चों के लिए अपने सपनों और इच्छाओं को भी त्याग कर, उन्हें हर वह अवसर देने का प्रयास करते हैं जो जीवन में आगे बढ़ने में सहायक हो। बचपन में जब हम पहली बार साइकिल चलाना सीखते हैं, तो गिरने से पहले हमें थामने वाला हाथ पिता का ही होता है। स्कूल की फीस से लेकर हमारे करियर के निर्माण तक, हर पड़ाव पर उनका संघर्ष, उनका समर्पण हमें आगे बढ़ने की शक्ति देता है। पिता—एक ऐसा किरदार, जो अक्सर पर्दे के पीछे होता है। उनका संघर्ष शोर नहीं करता, आंसू नहीं बहाता, बस चुपचाप चलता रहता है। दुनिया में शायद ही कोई ऐसी चीज़ हो जिसे एक पिता अपने बच्चों के लिए नहीं कर सकता। पिता की कहानी कोई फिल्मी संवाद नहीं होती, न ही किसी किताब के पन्नों पर लिखी जाती है। यह कहानी लिखी जाती है रोज़ सुबह की जल्दी उठी नींद में, बसों और ट्रेनों की धक्कामुक्की में, ऑफिस की कुर्सी और फाइलों के बीच, और उस आखिरी कौर में जिसे वो खुद खाने से पहले अपने बच्चों की थाली में परोस देते हैं। उनका प्यार शब्दों में कम, कर्मों में ज़्यादा झलकता है। वे शायद कभी खुलकर “मैं तुमसे प्यार करता हूँ” नहीं कहते, लेकिन जब ठंडी रात में चुपचाप कंबल ओढ़ाते हैं, जब अपनी ज़रूरतें टालकर बच्चों की किताबें खरीदते हैं, जब थक कर लौटने के बाद भी बच्चे की मुस्कान देख कर थकान भूल जाते हैं — तब हर बार उनका मौन बहुत कुछ कह जाता है।
आज की तेज़ रफ्तार दुनिया में हम कभी रुक कर सोचते भी नहीं कि जिन कंधों पर बैठकर हम दुनिया देखते हैं, वे कंधे खुद कितनी जिम्मेदारियों का बोझ उठाए हैं। पिता की जिंदगी की कहानी संघर्षों से भरी होती है — आर्थिक, मानसिक, सामाजिक — पर वह इसे कभी अपने बच्चों पर जाहिर नहीं होने देता। आज की व्यस्त जीवनशैली में हम अक्सर भावनाओं को शब्दों में व्यक्त नहीं कर पाते। पितृ दिवस एक ऐसा अवसर है, जब हम अपने पिता को यह बता सकते हैं कि हम उनके योगदान, उनके त्याग और उनके प्रेम को समझते हैं, सराहते हैं और उनसे प्रेरणा लेते हैं।
आइए, इस पितृ दिवस पर हम उन्हें धन्यवाद कहें —
उनके उस मौन प्रेम के लिए,
उनके निस्वार्थ समर्पण के लिए,
और जीवन को सँवारने वाले उनके हर प्रयास के लिए।
अंत में:
पिता सिर्फ एक रिश्ता नहीं, बल्कि जीवन की वह सीख हैं जो हर मोड़ पर हमारे साथ रहती है। सच ही कहा गया है —
“पिता वो दरख़्त हैं, जिसकी छाँव में बच्चा ताउम्र सुकून पाता है।” पिता का प्रेम किसी नदी की गहराई जैसा होता है — शांत, स्थिर, और अंतहीन। इस पितृ दिवस पर, आइए उस चुप कहानी को सुनें, समझें और महसूस करें, जो हर पिता अपने बच्चों के लिए जीता है। क्योंकि एक पिता का संघर्ष भले ही चुप हो, लेकिन उसका प्रेम सबसे ऊँचा होता है।
“जब तुम गहरी नींद में सोते थे,
मैं दिन-भर की थकान ओढ़े अपने कल के सपनों को बुनता था।
तुम्हारी मुस्कान के पीछे, मेरी चुप्पी की एक पूरी कहानी छिपी है…”
प्राचार्य
माँ नर्मदा कॉलेज ऑफ एजुकेशन धामनोद
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