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लहराता तिरंगा हमने घर – घर देखा

ब्रजेश बड़ोले

हमने एसा भी एक मंज़र देखा ।
न था तूफान पर टूटा घर देखा॥ 1
जब से बदला निज़ाम यहाँ का ।
गुन्डों पर हुकूमत का असर देखा॥ 2
दिल में रखते,वतन कहते है जो ।
ज़ेहन में भरा उनके, ज़हर देखा॥ 3
जो दिखाते थे, अब तक आंखें ।
हमने उनकी ऑखों में डर देखा॥ 4
भाई समझ गले लगाया था जिसे ।
हाथों में हमने उसके खंज़र देखा॥ 5
मासुम परिन्दों का शोर मचा देर तक।
कटते जब उन्होंने एक शज़र देखा॥6
रहते थे जो फुटपाथ या मकानों में ।
अब हमने उनका बनते घर देखा॥ 7
गांव को कर विरान चले गए लोग ।
कीमत चुकाई,तब बसा शहर देखा॥8
जो चले थे संग-संग मंजिल की ओर।
चले थोड़ी दूर, फिर जूदा सफर देखा॥9
अब तलक जो झुका – झुका सा रहा ।
पा कर सहारा, ऊँचा उसका सर देखा॥10
तुम करो बुराई या दे लो गाली घर में ।
कोसे बाहर तू,तुझसा न बद्तर देखा।।11
आंगन में दीप जले,बनी रंगोली द्वारे ।
राम आएगे- आएगे गूंजित स्वर देखा॥12
आज़ादी से मनाए, सब जश्ने आज़ादी ।
लहराता तिरंगा हमने घर – घर देखा॥13

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