शिक्षा पर नया पोर्टल ‘शगुन’ आरम्भ

केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की पहल के तहत विद्यालयी शिक्षा से जुड़े सभी इदारों के लिए शिक्षा से जुड़े सभी आंकड़ों को एक ही पोर्टल ‘शगुन’ से प्राप्त कर सकने में काफी आसानी होगी। काफी समय से इस प्रकार की पहल का बड़ी शिद्दत से इंतजार किया जा रहा था। विद्यालयी शिक्षा के लिए यह अच्छा एवं प्रभावकारी कदम है। यह शगुन विद्यालयी शिक्षा के लिए कितना शुभ और उपयोगी होगा यह तो भविष्य ही बताएगा, किन्तु 2.3 लाख से अधिक शैक्षिक वेबसाइट्स को इस पोर्टल की मदद से जोड़ना एक लाभकारी कदम है, शोध अध्ययनों एवं प्रशासकीय कार्यों आदि के लिए। शगुन पोर्टल की मदद से 1200 केंद्रीय विद्यालयों, 600 नवोदय विद्यालयों, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा समिति से संबंधित 18000 विद्यालयों, 30 राज्य शिक्षा शोध एवं प्रशिक्षण परिषदों तथा राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् से जुड़े 19000 शैक्षिक संस्थानों को जोड़ा गया है। देश के 15 लाख विद्यालय, 92 लाख शिक्षक एवं 26 करोड़ विद्यार्थियों की जानकारी कहीं भी बैठे-बैठे इस पोर्टल की मदद से आसानी से प्राप्त की जा सकती है। विभिन्न क्षेत्रों के विद्यालयों एवं उनमें उपलब्ध सेवाओं की जानकारी भी शगुन पोर्टल की मदद से मिल सकती है। विभिन्न प्रकार की सूचनाओं के अतिरिक्त यह पोर्टल विद्यार्थियों को ऑनलाइन अध्ययन सामग्री भी उपलब्ध कराएगा ताकि विद्यार्थी व्यक्तिगत रूप से पढ़ सकें। इतना ही नहीं, बल्कि यह पोर्टल वीडियो आधरित शिक्षा भी प्रदान करेगा। यहां प्रश्न यह उठता है कि क्या इन सूचनाओं के प्रकटीकरण एवं व्यक्तिगत शिक्षा प्राप्त कर सकने के लिए ऑनलाइन अध्ययन सामग्री उपलब्ध करा देने से देश की विद्यालयी शिक्षा की प्रमुख समस्याओं का सार्थक एवं प्रभावकारी समाधान संभव हो सकेगा? शिक्षा का अधिकार कानून लागू करना एवं इसमें आने वाली अड़चनों एवं लागू करने की चुनौतियों का सामना करने में यह मददगार साबित होगा? क्या उच्च प्राथमिक स्तर पर निर्धारित सीमा के भीतर विद्यालयों की उपलब्धता की समस्या से यह पोर्टल निजात दिला पाएगा? नई शिक्षा नीति (2019) के प्रारूप में संकल्पित शिक्षा सुधारों की चुनौतियों का सामना करने में यह पोर्टल प्रभावकारी भूमिका निभा पाएगा? और फिर विद्यालयी शिक्षा की गुणवत्ता को यह कदम प्रभावित करने में सक्षम हो सकेगा? यदि नहीं, तो हमें उन कार्यों को प्राथमिकता देनी होगी जो कक्षा-कक्ष की स्थिति को प्रभावित करें, विद्यार्थियों का अकादमिक एवं चारित्रिक विकास करें, देश को योग्य एवं कुशल नागरिक प्रदान करें एवं समाज को सरकारी योजनाओं के माध्यम से लाभ पहुंचाने का प्रयास कर सकें। परिधि पर अवस्थित विद्यालयी शिक्षा की समस्याओं की अपेक्षा केन्द्र में अवस्थित शैक्षिक समस्याएं अधिक महत्त्वपूर्ण होती हैं, और सरकारी प्रयास भी केन्द्र में अवस्थित समस्याओं के समाधान के लिए पूरी ईमानदारी से किए जाने चाहिए। नई शिक्षा नीति (2019) प्रारूप ने विद्यालयी शिक्षा के प्रति अपनी सकारात्मक सोच के माध्यम से इसमें परिवर्तन कर इसे अधिक उपयोगी बनाने का संकल्प प्रस्तुत किया है। 1968 की शिक्षा नीति की संस्तुति 102 विद्यालयी संरचना की जगह 2019 के प्रारूप ने 5334 विद्यालयी संरचना के प्रारूप को आगे बढ़ाया है। प्रारूप का यह मत है कि उक्त संरचना विद्यालय के विकास के लिए अधिक लाभकारी होगा। तात्पर्य 6-18 वर्ष तक की शिक्षा की जगह प्रारूप 3-18 वर्ष तक की विद्यालयी शिक्षा की वकालत कर रहा है। 3-6 वर्ष की पूर्व विद्यालयी शिक्षा को विद्यालयी शिक्षा का हिस्सा बनाना तथा 3-18 वर्ष की सम्पूर्ण विद्यालयी शिक्षा को शिक्षा अधिकार कानून के दायरे में लाना शिक्षा नीति प्रारूप का महत्वपूर्ण सुझाव है। विद्यालयी स्तर पर भाषा के विकास, बहु-भाषिकता, मातृ-भाषा में अध्ययन, विद्यालयों में तीन या इससे अधिक भाषाओं के ज्ञान, साइन लैंग्वेज के मानकीकरण, विद्यालयों में भाषा शिक्षकों की नियुक्ति, विदेशी भाषाओं के अध्ययन, चयनित भारतीय भाषाओं में विशिष्टता, शास्त्रीय साहित्य के विशिष्ट अध्ययन, मौखिक एवं लिखित संवाद एवं संप्रेषण को बढ़ावा देने, आदि पर नीति प्रारूप मुखर है। कौशल विकास, डिजिटल ज्ञान, भारत से संबंधित ज्ञान, समसामयिक मुद्दों को पाठ्यक्रम में शामिल करने, मूल्यांकन की प्रविधि में सुधार, राष्ट्रीय परीक्षा संस्था की स्थापना, विशेष क्षेत्र में प्रतिभा सम्पन्न विद्यार्थियों की सहायता, आदि जैसे पहलुओं पर भी शिक्षा नीति प्रारूप जोर डालता है। ये तमाम मद्दे ऐसे हैं, जो चुनौती के रूप में विद्यमान हैं, लेकिन विद्यालयी शिक्षा के विकास के लिए ये जरूरी हैं। खतरे के दौर से गुजर रहे संस्थागत शिक्षण को बचाने के लिए नीति के तत्वों का क्रियान्वयन बेहद जरूरी है, नहीं तो कहने की जरूरत नहीं है कि कोचिंग, ट्यूशन, फ्लाइंग क्लास जैसे नये अनुभवों पर आधरित विद्यालयी शिक्षा विद्यार्थी के सम्पूर्ण विकास के अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाएगी।

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