भोपाल। सत्रहवी शताब्दी में औरंगजेब का शासन चरम पर था और ब्रजभूमि के किसानों पर जजिया कर थोपना, मंदिरों को तोड़ना, मासूम औरतों पर अत्याचार और धर्म परिवर्तन जैसे अत्याचार हो रहे थे ऐसे समय में मथुरा की ब्रजभूमि में किसानों का नेतृत्व करने वाले वीर गोकुला जाट ने अन्याय के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल फूंककर भारतीय धर्म, संस्कृति और अस्मिता को बचाये रखने के लिए ब्रजभूमि, सनातन धर्म और देवस्थलों की रक्षा करते हुए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। वीर गोकुला की वीरता, स्वाभिमान, समर्पण और संकल्पबद्धता को नाटक में बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया।
स्वराज संस्थान संचालनालय द्वारा शहीद भवन में आयोजित छह दिवसीय जनयोद्धा राष्ट्रीय नाट्य समारोह के शुभारम्भ अवसर पर युवा रंग निर्देशक देव फौजदार द्वारा निर्देशित नाटक वीर गोकुला का मंचन हुआ। नाटक के निर्देशक फौजदार ने बताया कि गोकुला का संघर्ष केवल सत्ता के खिलाफ नहीं था बल्कि मानव गरिमा और धर्म की रक्षा के लिए था। गोकुला का शौर्य और बलिदान इतिहास का वह क्षण है जहां किसान समाज ने पहली बार अत्याचार के खिलाफ संगठित होकर प्रतिरोध का स्वर दिया। वीर गोकुला का बलिदान अत्याचार के विरुद्ध साहस, धर्मनिष्ठा और राष्ट्रभक्ति का अमर प्रतीक होकर आज भी युवाओं को प्रेरित करता है।
नाट्य किरण मंच मुंबई के 15 से अधिक कलाकारों द्वारा अभिनीत नाटक में जोगिंदर बोकन, बेला बारोट, सत्यम दांगी, मानव तिवारी, कुलदीप, अनिल, पिंकेश, श्रीदीप, मेहश, नितिन, परविंदर, चित्रा, ताशी, गौरव एवं रोहित का अभिनय सराहनीय रहा। प्रकाश परिकल्पना जिमी सलगोत्रा, मंच परिकल्पना अजय कुमार एवं आदित्य की वेशभूषा ने नाटक को रोचकता प्रदान की।
















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