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जीवन एक रंगमंच, मुखौटे लगाए हम सभी निभाते हैं अनेक भूमिकाएं : विजय मनोहर तिवारी

भोपाल। स्मार्ट सिटी रोड,रीजनल साइंस सेंटर के पास स्थित रंग श्री लिटिल बैले ट्रूप में संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से रंग संस्कृति सृजन समिति द्वारा 12 से 14 दिसंबर तक द्वितीय ‘रंग संस्कृति नाट्य समारोह संपन्न हुआ।  शुभारंभ सत्र में माखनलाल चतुवेर्दी विश्वविद्यालय के कुलगुरु विजय मनोहर तिवारी ने कहा कि, जीवन एक रंग मंच है और हम सभी मुखौटे लगाकर कभी पिता कभी माता कभी बहन कभी पुत्र की भूमिका  निभाते रहते हैं। नाट्य समारोह के शुभारम्भ सत्र में रंगमंच,संस्कृति एवं साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले  मप्र के चुनिंदा रंग कलाकारों एवं साहित्य धर्मियों को स्मृति चिन्ह के साथ ‘रंग संस्कृति प्रतिभा सम्मान ‘2025’ से  सम्मानित किया गया। इस अवसर पर भोपाल के वरिष्ठ रंग कर्मी बालेंद्र सिंह ने इन दिनों रंगमंच के लिए जगह तलाशने को एक बड़ी समस्या बताया।

शुभारंभ सत्र के बाद समारोह के प्रथम दिवस की प्रस्तुति के रूप में संजय उपाध्याय के निर्देशन में लोक कहानियों पर आधारित बाल नाट्य ‘एक थी चिड़ी’ का मंचन मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय में अध्यनरत रंग प्रयोगशाला के छात्रों द्वारा किया गया।  समारोह की द्वतीय संध्या13 दिसंबर को खुशबू चौबितकर निर्देशित नाटक ‘द रिस्पेक्टफुल प्रॉस्टिट्यूट’का मंचन भोपाल की एक जुट नाट्य संस्था के कलाकारों द्वारा किया गया। 1947 में प्रकाशित नाटक ‘द रेस्पेक्टफुल प्रॉस्टिट्यूट’विश्व-प्रसिद्ध लेखक ज्याँ-पॉल सार्त्र द्वारा लिखा गया है। इस फ्रेंच नाटक का हिन्दी में अनुवाद मनोज कश्यप ‘भालेन्द्र’ने किया है। नाटक की कहानी एक क्रूर दुनिया के अंदर स्वतंत्रता के नुकसान पर एक संक्षिप्त नजर डालती है । नाटक 1940 के दशक में अमेरिकी दक्षिण में नस्लवाद के मुद्दों की पड़ताल  भी करता है जिसके  अंतर्गत यह वर्ग, उत्पीड़न और सामाजिक संघर्ष के विषय को छूता है। नाटक की कहानी के माध्यम  से विशेषकर गौरों की चंगुल में पड़े हब्शी और लिज्जी की पीड़ा को व्यक्त किया गया ।  प्रीति श्राीवास्तव नाटक में लिज्जी मैके -की सशक्त भूमिका के साथ न्याय करती दिखीं वहीं सीनेटर क्लार्क के बेटे फ्रेड की भूमिका मे सतीश राय की कठोर भूमिका में नजर आए। साथ ही नीग्रो हब्शी की  सहज भूमिका में तरुण भी पसंद किए गए।

तृतीय दिवस की संध्या दो प्रस्तुतियां मंचित हुई,पहले लोकगायक प्रवीण चौबे ने साथी कलाकारों के साथ जनश्रुति एवं लोक कथाओं पर आधारित गांव के प्रसिद्ध गीतों पर आधारित यशोगान की प्रस्तुति दी जिसमें उत्साहित दर्शक भी  मच पर आकर झूम उठे। इसके बाद सादात भारती द्वारा निर्देशित नाटक पढ़िए कलिमा का मंचन हुआ जिसमें दर्शकों को बालेंद्र सिंह का सशक्त अभिनय देखने को मिला।

रंग संस्कृति नाट्य समारोह के अंतिम दिवस की संध्या पर रंग श्री लिटिल बैले ट्रूप के राग बंध सभागार में

उर्दू के मशहूर अफसाना निगार सआदत हसन मंटो की कहानी पर आधारित नाटक ‘पढ़िए कलिमा’ का मंचन हुआ इस नाटक का मंचन पहले भी कई बार हुआ पर कहानी का मजबूत पक्ष, निर्देशक  की सूझबूझ और रंग कमी बालेंद्र सिंह का अभिनय हर बार प्रस्तुति को एक नयापन दे जाता है। 1947 आजादी के समय दंगे और बंटवारे की पृष्ठ भूमि पर आधारित नाटक ‘पढ़िए कलिमा’ को मशहूर  नाटककार  राजेश कुमार ने नाट्य रूपांतरित किया है। नाटक मानव की उत्कट इच्छाओं, अनुभूतियों पर केन्द्रित इस कहानी में लेखक स्त्री, पुरूष के मनोभावों, आकांक्षाओं की समानता और उसकी पूर्ति के औचित्य के प्रश्न को दर्शकों के सामने पेश करता है। हमारे मनुवादी समाज में जहाँ पुरूषों की हर इच्छा को जायज होने की स्वीकारोक्ति प्राप्त है तो क्या वही आकांक्षा स्त्रियों के लिये जायज होना चाहिए या नहीं? जिंदगी की संरचना स्त्री-पुरूष के समान अन्तसंर्बंधों से ही संचालित है। आज जहाँ हर तरफ हमारे सभ्य समाज के लिए नारी अधिकारों की बात हो रही है जो होना ही चाहिये तो आज के परिप्रेक्ष्य में यह नाटक नारी अधिकारों और उत्थान की बात करते हुए समाज को एक नई रोशन ख्याली से अवगत कराता है। मनुष्य की अतिरिक्त इच्छाओं की अतिरिक्त इच्छापूर्ति के लिए निरंतर अपराध होते हैं। पुरूषसत्ता को चुनौती देता ये नाटक पितृ सत्तात्मक समाज में स्त्रियों की जो आकांक्षाएं छुपी होती है उसका विस्फोट है। यह नाटक स्त्री-पुरूष की तलाश, भूख, रहस्य, रोमांच और  समानता की बात कहता है।  नाटक में अब्दुल करीम नामक किरदार के साथ बालेंद्र सिंह का सशक्त अभिनय पूरी तरह से न्यायसंगत दिखाई देता है। राम बाबू की प्रकाश परिकल्पना भी  दर्शकों तात्कालिक समय की ओर ले जाती है। स्तुति में संगीत संपादन गोलू शर्मा का था वहीं मंच परिकल्पना एवं निर्देशन सादात भारती का रहा।

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