भोपाल. बेवहज हुई होड़ या प्रतिद्वंद्विता किस तरह बदले की भावना में बदल जाती है और वह एक हिंसा के रूप में सामने आती है कुछ इसी तरह का संदेष देती दिखी कहानी अनेकों हिटलर। कहानी दूजौ कबीर में बताया गया कि कलाकार कभी किसी के बंधन में नहीं रह सकता। उसे कोई भी लोभ या मोह बांधकर नहीं रख सकता। तीसरी कहानी आदमखोर में बताया कि बदले की भावना किस तरह व्यक्ति को पतन में ले जाकर नष्ट कर देती है।
रबीन्द्रनाथ टैगोर विष्वविद्यालय द्वारा स्थापित टैगोर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में कहानी के रंगमंच के प्रणेता और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पूर्व निदेषक देवेन्द्र राज अंकुर के निर्देषन में प्रसिद्ध कहानीकार विजयदान देथा की तीन कहानियों का मंचन किया गया। लगभग 12 दिन की कार्यषाला में श्री अंकुर जी ने टैगोर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के विद्यार्थियों को देथा जी की तीन कहानियां अनेकों हिटलर, दूजौ कबीर और आदमखोर तैयार करवाई थी। जिसकी कक्षाभ्यास प्रस्तुति रबीन्द्रनाथ टैगोर विष्वविद्यालय स्थित षारदा आडिटोरियम में की गई। नाट्य प्रस्तुति के दौरान मध्यप्रदेष नाट्य विद्यालय के पूर्व निदेषक संजय उपाध्याय भी मौजूद थे। उन्होंने प्रस्तुति के बाद कहानी के रंगमंच और अंकुर जी कृतित्व पर प्रकाष डाला। नाटक में प्रकाष व्यवस्था डाॅ. आनंद पाण्डेय की थी। प्रस्तुति सहयोग अविजित सोलंकी का था। संचालन नाट्य विद्यालय के समन्वयक विक्रांत भट्ट ने किया।
टैगोर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में हुआ विजयदान देथा की कहानियों का मंचन

Leave a Reply