भोपाल। मध्यप्रदेश
जनजातीय संग्रहालय की ‘लिखन्दरा प्रदर्शनी दीर्घा’ किसी एक जनजातीय चित्रकार की प्रदर्शनी सह
विक्रय का संयोजन शलाका नाम से प्रतिमाह किया जाता है। इसी क्रम में जून माह में
गोण्ड जनजातीय चित्रकार पद्मश्री सुश्री दुर्गाबाई व्याम के चित्रों
की प्रदर्शनी का संयोजन किया गया है। यह 26वीं चित्र प्रदर्शनी 30 जून,2022 तक
निरंतर रहेगी। चित्रकार पद्मश्री सुश्री दुर्गा व्याम के चित्रों में ग्रामीण
जीवन, महुआ वृक्ष तले वन्य जीव, लकड़हारा एवं देवी पूजन, मेढ़क परिवार, हिरण एवं
वृक्ष, ,सुवा गीत, लकड़ी ले जाते ग्रामीण, हाथी सवार, वृक्ष तले गाय, खेत जोतते
किसान परिवार, राजा रानी एवं सुनेला घोड़े की कथा और अन्य कई विषय देखने को मिलते
हैं। प्रदर्शनी में उनके द्वारा बनाये 26 चित्रों को प्रदर्शित किया गया है।
वर्ष 1974 में मध्यप्रदेश के डिण्डोरी के ग्राम बरबसपुर में एक विलक्षण प्रतिभा की धनी बच्ची का जन्म हुआ, जिसे हम सब दुर्गाबाई के नाम से जानते हैं। दुर्गा का बचपन गाँव में ही बीता, बचपन से ही घर की लाड़ली दुर्गा को कहानियाँ सुनने-कहने का शौक रहा और कमाल यह भी कि एक बार सुनी कहानी दुर्गा को भूले न भूलती बल्कि हर बार वही कहानी अथवा जातीय मिथक कोई अलग ही अर्थ दे जाते और हर बार कहानी का रूप दुर्गा के लिए बदल जाता। माता-पिता खेती-बाड़ी करते और दुर्गा भाई-बहनों संग माता-पिता की सहायता करतीं। घर-परिवार में यूँ तो चित्र बनाने की कोई परंपरा थी नहीं, बस कभी कभार तीज-त्योहारों पर जब माँ और बहनें घर को ढींग दे कर सजा लेती थीं, तब दुर्गा उनका सहयोग करतीं। आस पड़ोस की स्त्रियों को देखकर दुर्गा ने पूजा इत्यादि में बनने वाले चित्र, आकार -आकृतियाँ बनाना शुरू किया, चित्र बनाने में मन रमता गया और धीरे-धीरे उसमें पारंगत भी होती गयीं। बाद में तो खाली समय मिलने पर अकसर आस-पड़ोस में लोगों के घर जाकर चित्र बना आतीं। छोटी उम्र में दुर्गा का विवाह सनपुरी के सुभाष सिंह से हो गया और दुर्गा बरबसपुर से सनपुरी आ गयी।
ससुराल में पति सुभाष पहले से ही लकड़ी एवं
मिट्टी के शिल्प बनाने का कार्य करते थे और सुभाष के बड़े भाई भी मिट्टी के अद्भुत
शिल्पी हैं, सो
दुर्गा को विवाह उपरांत एक कलात्मक रुचियों वाला परिवार मिला,
जहाँ समय-समय पर वह भी अपनी कला को अभिव्यक्त करती रहीं।
विवाह के कुछ समय उपरांत दुर्गा पति सुभाष संग भोपाल आ गयीं। वे सुभाष की बड़ी बहन
ननकुसिया और जीजा स्व. जनगढ़ सिंह श्याम के पास रहने लगे। दुर्गा में एक
प्रतिभाशाली कलाकार के समस्त गुण जनगढ़ ने देखे और दुर्गा एवं सुभाष दोनों को ही
कागज पर चित्र बनाने के लिए प्रेरित किया, तब पहली बार दुर्गा ने कागज पर वृक्ष एवं पक्षी उकेरे जो
जनगढ़ सिंह श्याम को बेहद पसंद आये। उसके पश्चात् दुर्गा ने जातीय मिथकों को अपनी
कल्पना के अनुरूप चित्रित करना आरम्भ किया जो की गोंड चित्रकला का एक अभिन्न अंग ही
है,
जिसमें जनगढ़ सिंह श्याम ने इनकी हर संभव सहायता भी की।
दुर्गा के अनुसार एक कहानी हर बार एक नए रूप में उसके सामने खुलती है और इसीलिए
चित्र भी हर बार कुछ अलग ही बन जाते हैं। ये चित्र स्मृतियों के चित्र ही हैं।
दुर्गा के चित्रों में सबसे आकर्षक पक्ष कौतुहल भरी आँख ही है जो उनके चित्रों में
आज तक ठीक वैसे ही बनती है जैसे वो पहली बार चित्र बनाने में बनायीं थीं,
साथ ही रेखाओं का संतुलित व्यवहार भी दुर्गा के चित्रों को
एक अलग पहचान दिलाता है। जनगढ़ ने दुर्गा को एक प्रकार की शैली को विकसित करने की
सीख दी,
जो उनके चित्रों की पहचान बन सके।
चटकीले पीले-हरे-नीले रंग दुर्गा को बहुत भाते हैं। दुर्गाबाई व्याम की सृजन यात्रा वर्ष 1996 में भारत भवन में आयोजित सामूहिक चित्र शिविर से आरम्भ हुई, उसके बाद तो सृजन की अनवरत यात्रा आरंभ हो गयी। समूचे भारत के लगभग हर छोटे बड़े शहर में आयोजित चित्र शिविरों, कार्यशालाओं में दुर्गा की सक्रिय भागीदारी रही है। देश की विभिन्न कला दीर्घाओं में दुर्गा बाई की लगभग 20 सामूहिक चित्र प्रदर्शनियाँ आधुनिक चित्रकारों के संग संयोजित हो चुकी हैं। टोक्यो, फ्रांस की कला दीर्घाओं सहित 5 से अधिक अन्तर्राष्ट्रीय चित्र प्रदर्शनियों में भी दुर्गा बाई की सक्रिय उपस्थिति दर्ज है। दुर्गा की दो एकल प्रदर्शनियाँ भी भारत भवन-भोपाल में संयोजित की जा चुकी हैं। अपने चित्रों से दुर्गा बाई ने अनेक प्रकाशकों, जिसमें तारा प्रकाशन प्रमुख है, कि चित्रात्मक पुस्तकों वन- टू थ्री, द नाईट लाइफ ऑफ़ ट्रीज, एकलव्य प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पाली बिग बुक, खिचड़ी तथा नवायना द्वारा प्रकाशित बाबा साहेब अंबेडकर के जीवन पर आधारित भीमायना के लिए चित्रांकन कार्य किया है।
दुर्गा बाई व्याम ने भोपाल स्थित मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में नर्मदा उत्पति कथा, बासिन कन्या एवं घरसरी माता की गोण्ड कथाओं को नये माध्यमों में चित्रित किया है। खजुराहो में निर्माणाधीन ‘आदिवर्त’ जनजातीय एवं लोक कला राज्य संग्रहालय के लिए नर्मदा उत्पत्ति, उसके तटों जनजीवन एवं धार्मिक महत्व के स्थानों का चित्रण अपनी शैली में कर रही हैं। दुर्गा को उनकी सृजन यात्रा के लिए वर्ष 2009 में मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग का प्रतिष्ठित रानी दुर्गावती राष्ट्रीय पुरस्कार, वर्ष 2002 का राज्य रूपंकर कला पुरस्कार, कला चित्रकला पुरस्कार एवं इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय संस्कृति पुरस्कार 2006, आदित्य विक्रम बिरला कला शिकाहर एवं कला किरण पुरस्कार 2012, देवी फाउंडेशन पुरस्कार 2016 से सम्मानित किया जा चुका है। दुर्गाबाई व्याम को वर्ष 2022 में उनकी अप्रतिम कला सृजन यात्रा के लिए देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से अलंकृत किया गया है। दुर्गाबाई व्याम भोपाल में रहकर अपनी कलायात्रा एवं गोंड चित्रांकन को अगली पीढ़ी में हस्तांतरित करने के प्रयत्न के साथ स्वयं सतत् कला कर्म में सक्रिय हैं।
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