दीपावली का है सामाजिक और धार्मिक महत्त्व

गोवर्धन यादव

भारत में मनाये जाने वाले सभी त्योहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टियों से अप्रतिम महत्व है. सामाजिक महत्व इस दृष्टि से कि दीपावली आने से पूर्व लोग अपने घर-द्वार की स्वच्छता पर ध्यान देने लगते हैं. कूड़ा-कचरा साफ करते हैं, टूट-फूट सुधरवाकर घर की दीवारों पर सफेदी, दरवाजों पर रंग-रोगन करवाते हैं, जिससे न केवल उनकी आयु बढ़ जाती है बल्कि आकर्षण भी बढ़ जाता है. वर्षा-ऋतु में आयी अस्वच्छता भी दूर हो जाती है.
दीपावली के दिन धन-सम्पदा की अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मी की पूजा करने का विधान है. शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन जो भी व्यक्ति दिन-रात का जागरण करके लक्ष्मीजी की पूजा-अर्चना करता है, उसके घर में लक्ष्मी का निवास होता है. आलस्य में पड़ा व्यक्ति अगर इन चमत्कारी दिनों का उपयोग नहीं करता है, उसके घर से लक्ष्मीजी रूठ कर चली जाती है.
ब्रम्हपुराण में लिखा है कि कार्तिक की अमावस्या की अर्धरात्रि में लक्ष्मीजी सदगृहस्थों के घर में जहाँ-तहाँ विचरण करती है. इसलिए अपने घर को सब प्रकार से शुद्ध-स्वच्छ और सुशोभित करके दीपावली तथा दीपमालिका मनाने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं और वहाँ स्थायीरूप से निवास करती हैं.
प्रायः प्रत्येक घर के लोग अपने रीति-रिवाज के अनुसार श्री गणेश-लक्ष्मी पूजन तथा द्रव्यलक्ष्मी का पूजन करते हैं.
पश्चिम के मनीषियों का कथन है कि जिन देशों और जातियों में जितने अधिक उत्सव अथवा पर्व मनाए जाते हैं, वे देश तथा जातियाँ उतने ही उन्नत समझे जाते हैं. इस कथन की कसौटी पर यदि भारत और उसके निवासी हिन्दुओं को देखा जाए तो विदित होगा कि विश्व में सर्वाधिक जीवन्त देश और जाति भारत और भारतीय हिन्दू हैं. भारतीय पंचाग में शायद ही कोई तिथि होगी जो किसी व्रत, पर्व, उत्सव अथवा त्योहार से न जुड़ी हुई हो.
मार्कण्डेय पुराण के अन्तर्गत श्री दुर्गा सप्तशती में तीन विशेष रात्रियों का उल्लेख किया गया है-कालरात्रि-महारात्रि तथा मोहरात्रि कालरात्रि से अभिप्राय है- होली, महारात्रि-शिवरात्रि तथा मोहरात्रि-दीपावली कुछ विद्वान दीपावली को कालरात्रि मानते हैं, परंतु इसे मोहरात्रि कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी
हमारे यहाँ जितने भी पर्व, उत्सव अथवा त्योहार हैं, वे सभी दिन के प्रकाश में समारोहपूर्वक मनाए जाते हैं. होली, दीपावली, शरद पूर्णिमा, शिवरात्रि तथा श्रीकृष्णजन्माष्टमी- ये एसे पर्व हैं जो रात्रि में मनाए जाते हैं। त्योहारों, पर्वोत्सवों का अपना विशेष महत्व है परन्तु वर्ण-विधान के अनुसार श्रावणी को ब्राम्हणों का, विजयादशमी को क्षत्रियों का, दीपावली को वैश्यवर्ग का तथा होली को अन्त्यजों का त्योहार माना जाता है. आज ये चारों पर्व हिन्दू मात्र के पर्व और त्योहार हैं. इन सब त्योहारों में खास पर्व होता है-दीपावली का. अन्य त्योहार तो केवल एक दिन के लिए मनाए जाते हैं जबकि दीपावली का त्योहार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से कार्तिक शुक्ल द्वितीया तक माने पूरे पाँच दिन तक मनाया जाता है। जैसा के हम जानते हैं कि यह त्योहार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से आरम्भ होता है, इसे धनतेरस के नाम से स्मरण किया जाता है. यह नाम आयुर्वेद प्रवर्तक भगवान धन्वन्तरि तथा यमराज दोनों से सम्बन्ध रखता है. एक ओर इस दिन वैद्य समुदाय भगवान धनवन्तरि का पूजन कर निज राष्ट्र के लिए स्वास्थ्य-स्मृद्धि की याचना करता है, वहीं दूसरी ओर सामान्य गृहस्थ यमराज के उद्देश्य से तेल के दीपक जलाकर निज गृह के मुख्य द्वार पर रखते हैं.
पुराणों के अनुसार कार्तिकमास यमुना स्नान और दीपदान द्वारा विशेष फलदायी प्रतिपादित हुआ है. धनतेरस के दिन यमुना स्नान करके, यमराज और धन्वन्तरि का पूजन-दर्शन कर यमराज के निमित्त दीप-दान करने का विधान है।
समष्टि रूप में स्वास्थ्यसंपदा, रूपसंपदा, धनसंपदा, शस्यसंपदा, शक्ति संपदा तथा उल्लास और आनन्द को परिवर्धित करने वाले ‘दीपावली पर्व’ का धार्मिक, सामाजिक और राष्ट्रीय महत्व अनुपम है और वही इसे पर्वराज बना देता है।

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