पर्यावरण : मौसम परिवर्तन : एक बदलती दुनिया की चुनौती

 डॉ. योगिता सिंह राठौड़

मौसम परिवर्तन के कारण पूरी दुनिया में ठंड का प्रभाव बढ़ रहा है। यह समस्या न केवल हमारे पर्यावरण को प्रभावित कर रही है, बल्कि यह हमारे स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और समाज को भी प्रभावित कर रही है। मौसम परिवर्तन के कारण ठंड का प्रभाव बढ़ रहा है। यह समस्या विशेष रूप से उत्तरी गोलार्ध में अधिक देखी जा रही है, जहां ठंड के मौसम में तापमान में गिरावट आ रही है। ठंड की समस्या उन प्रदेशों में सबसे ज्यादा देखने को मिलती है जहां पर वायु प्रदूषण की मात्रा सर्वाधिक होती है। भारत में दिल्ली समेत अनेक ऐसे औद्योगिक शहर है जहां विशेष तौर पर ठंड के मौसम में स्वास्थ्य एवं श्वास संबंधी समस्याएं जो़रों पर है।

सर्दियों के मौसम में वायु प्रदूषण का स्तर अचानक बढ़ जाता है और सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद ये कम होने का नाम नहीं लेता. लेकिन आखिर ऐसा हो क्यों है? सर्दियों में हवा ठंडी हो जाती है. ठंडी हवा, गर्म हवा की तुलना में अधिक सघन होती है और धीमी गति से चलती है. हवा का घनत्व ज्यादा होने के कारण धूल के कण जैसे प्रदूषण को बढ़ाने वाले कारक हवा में फंस जाते हैं. हवा धीमी गति से भी चल रही होती है इसलिए ये प्रदूषण को दूर भी नहीं ले जाती. यही कारण है कि आसमान में धुंध छा जाती है और सर्दियों में वायु प्रदूषण बहुत लंबे समय तक बना रहता है.

सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CBCB) के आंकड़ों के मुताबिक, शनिवार को राजधानी का एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी AQI 379 से गिरकर 343 रिकॉर्ड हुआ. प्रदूषण का स्तर (Delhi AQI)भले ही कम हो गया हो, लेकिन ये अभी भी गंभीर कैटेगरी में आता है और सेहत के लिए नुकसानदेह भी है। वही सम्पूर्ण भारत का औसत AQI 170 दर्ज् किया गया है जो कि खराब श्रेणी में ही आता है। ठंड के मौसम में बढ़ता हुआ प्रदूषण एक वैश्विक समस्या का विकराल रूप लेता जा रहा है जिसके अनेक कारण हो सकते हैं जैसे –

ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन: ग्रीनहाउस गैसों जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, मेथेन और नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन मौसम परिवर्तन का एक प्रमुख कारण है।

वनस्पति वृक्षों की कटाई: वनस्पतिवृक्षों की कटाई से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है, जो मौसम परिवर्तन को बढ़ावा देती है।

औद्योगिक गतिविधियाँ: औद्योगिक गतिविधियों से निकलने वाले प्रदूषक मौसम परिवर्तन को बढ़ावा देते हैं।

पराली जलाना: किसानों द्वारा खेतों में पराली जलाने से बड़ी मात्रा में धुआं निकलता है जो वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण है।

घरेलू ईंधन का दहन: कई घरों में अभी भी खाना बनाने के लिए लकड़ी या गोबर के उपले का इस्तेमाल होता है, जिससे घर के अंदर और बाहर दोनों जगह वायु प्रदूषण होता है।

प्रतिकूल मौसमी दशाएं: सर्दियों में तापमान कम होने और हवा की गति कम होने से प्रदूषक तत्व हवा में जमा हो जाते हैं।

शीत ऋतु में वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन जाती है, खासकर भारत के कई शहरों में। इस समस्या के पीछे कई कारण हैं और इसके दूरगामी परिणाम भी होते हैं।

स्वास्थ्य समस्याएं: वायु प्रदूषण से सांस लेने में तकलीफ, अस्थमा, फेफड़ों के रोग, हृदय रोग आदि जैसी कई बीमारियां हो सकती हैं।

आर्थिक प्रभाव: ठंड के मौसम में आर्थिक प्रभाव भी पड़ता है, जैसे कि कृषि उत्पादन में कमी और परिवहन में दिक्कतें।

पर्यावरण प्रभाव: ठंड के मौसम में पर्यावरण प्रभाव भी पड़ता है, जैसे कि वनस्पतिवृक्षों की कटाई और जल संकट। प्रदूषण से फसलों को नुकसान होता है, पेड़-पौधे मर जाते हैं और पारिस्थितिक तंत्र बिगड़ता है।

दृश्यता कम होना: प्रदूषण के कारण दृश्यता कम हो जाती है जिससे सड़क दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है। जलवायु परिवर्तन से लड़ना: जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए प्रयास करना क्योंकि यह भी वायु प्रदूषण और कोहरे को बढ़ावा देता है।

भारत सरकार और राज्य सरकारें वायु प्रदूषण को कम करने के लिए कई उपाय कर रही हैं, जैसे:

पराली प्रबंधन: किसानों को पराली जलाने के विकल्प उपलब्ध कराना, जैसे कि पराली का खाद बनाना, बायोमास प्लांट्स लगाना आदि।

वाहनों का उत्सर्जन कम करना: वाहनों के उत्सर्जन मानकों को सख्त बनाना, इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना और सार्वजनिक परिवहन को बेहतर बनाना।

औद्योगिक इकाइयों पर नियंत्रण: उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए कड़े नियम बनाना और उनका पालन करवाना।

जागरूकता अभियान: लोगों को वायु प्रदूषण के खतरों के बारे में जागरूक करना और प्रदूषण कम करने के उपायों के बारे में बताना।

हरित क्षेत्रों का विकास: शहरों में अधिक से अधिक पेड़ लगाना और हरित क्षेत्रों का विकास करना। पेड़ वायु प्रदूषण को कम करने में मदद करते हैं।

हम क्या कर सकते हैं?

देश के गणमान्य नागरिक होने के नाते आम जनता भी समस्या को नियंत्रित करने में अपना सहयोग प्रदान कर सकती है –

सार्वजनिक परिवहन का उपयोग: जहाँ तक हो सके सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करें।

कार पूलिंग: कार पूलिंग करके वाहनों की संख्या कम करें।

साइकिल का उपयोग: छोटी दूरी की यात्रा के लिए साइकिल का उपयोग करें।

घरों में स्वच्छ ईंधन का उपयोग: खाना बनाने के लिए स्वच्छ ईंधन का उपयोग करें।

पेड़ लगाएं: अपने आसपास पेड़ लगाएं।

सरकारी योजनाओं में भाग लें: सरकार द्वारा चलाई जा रही वायु प्रदूषण कम करने की योजनाओं में भाग लें।

वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या है, जो बदलते मौसम में और अधिक समस्या उत्पन्न करती है जिसमें श्वास संबंधित रोगों की समस्या सबसे ज्यादा होती है  जिसके लिए सभी को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है। सरकार के साथ-साथ हमें भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।

डॉ. योगिता सिंह राठौड़

प्राचार्य

माँ नर्मदा कॉलेज ऑफ एजुकेशन धामनोद

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