भोपाल। आदर्श योग आध्यात्मिक केन्द्र कोलार रोड़ भोपाल के योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि सामूहिक योग साधना ॐ उच्चारण , गायत्री मंत्र जप , महामृत्युंजय मंत्र जप एवं पुष्प वर्षा के साथ विद्या की देवी माँ सरस्वती देवी की पूजा आरती करके बसंत पंचमी पर्व उत्साह पूर्वक मनाया गया। प्रमुख रुप से वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य रमेश संगमकर, सुनीता जोशी, लता पंजाबी, परवीन किदवई, श्रीमती नर्मदा चङोकर, लता बंजारी, श्रद्धा गणपते, आशा गजभिये, सुरेखा चावला, उषा सोनी, सारंगा नगरारे, यश गौतम, निधि गौतम सुनील सोलंकी, प्रमोद चौरसिया, उपस्थित रहें।
योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि हिन्दी पंचांग के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि जनमानस में वसंत पंचमी के नाम से लोकप्रिय है। इस दिन ज्ञान और वाणी की देवी मां सरस्वती की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। मां सरस्वती की कृपा से ही व्यक्ति को ज्ञान, बुद्धि, विवेक के साथ विज्ञान, कला और संगीत में महारत हासिल करने का आशीष मिलता है |
बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा की जाती है, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ज्ञान और वाणी की देवी मां सरस्वती माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ही ब्रह्माजी के मुख से प्रकट हुई थीं। इस वजह से ही वसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा करने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन आराधना करने से माता सरस्वती जल्द ही प्रसन्न होती हैं।
बसंत पंचमी के दिन व्यक्ति को स्नान आदि से निवृत होने के बाद पीले या श्वेत वस्त्र धारण करना चाहिए। मां सरस्वती की विधि विधान से पूजा करने के दौरान उनको पीले पुष्प, पीले रंग की मिठाई या खीर जरूर अर्पित करना चाहिए। इसके अलावा उनको केसर या पीले चंदन का टीका लगाएं। पीले वस्त्र भेंट करें।
बसंत पंचमी का दिन शिक्षा प्रारंभ करने, नई विधा, कला, संगीत आदि सीखने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। छोटे बच्चों को इस दिन अक्षर ज्ञान कराया जाता है। इस लोग गृह प्रवेश का कार्य भी करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, बसंत पंचमी को कामदेव पत्नी रति के साथ पृथ्वी पर आते हैं और हर ओर प्रेम का संचार करते हैं | वसंत पंचमी को ज्ञान पंचमी या श्री पंचमी भी कहते हैं। आज के दिन सरस्वती पूजा के अतिरिक्त भगवान तथा कामदेव की भी आराधना करते हैं । अध्यात्म की राह भी दिखाता है वसंत वसंत पर्व जहां एक ओर आशा, उत्साह एवं उमंग से परिपूर्ण जीवन की ओर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है, वहीं दूसरी ओर शिक्षा और बुद्धि के समुचित नियोजन का आशावादी वातावरण भी बनाता है। ऋतुराज वसंत के आते ही प्रकृति का रूप निखर उठता है। पतझड़ की विदाई शुरू होती है और धरती पर शस्य श्यामला होने लगती है। कुछ ही दिनों में माहौल बदल-सा जाता है और धरती हरे-भरे पेड़-पौधों, उन पर छाई नई-नई कोपलों और फूलों से मनोरम हो उठती है।
सरसों के फूलों की बसंत चादर ओढ़कर नैसर्गिक शृंगार से सज-धज जाती है। बयार में यह रूप नवगति, नवलय, तालछंद नव से समन्वित हो जाता है। मनुष्य ही नहीं कुदरत का कोना-कोना पुलकित हो उठता है। यह आनंद वसंत के रूप में प्रकट होता है। काव्य-ग्रंथों और शास्त्रों, पुराणों में वसंत का सजीव वर्णन मिलता है। कवियों ने लौकिक और आध्यात्मिक चित्त से ऋतुराज के लिए समृद्ध मन से गीत गाए हैं।
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