महक कछावा
वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक चुनौती बन चुका है। पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है, जिससे मौसम के पैटर्न में असामान्य बदलाव देखे जा रहे हैं। भारत जैसे विविध भौगोलिक संरचना वाले देश पर इसका प्रभाव और भी गहरा है। बीते कुछ वर्षों में बाढ़, सूखा, चक्रवात, हीटवेव और लैंडस्लाइड जैसी प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
देश के कई हिस्सों में बारिश और ओलावृष्टि का दौर भीषण गर्मी के दौरान भी जारी था। मौसम विभाग के मुताबिक मौसम का मिजाज कुछ दिनों तक ऐसा ही रहेगा। सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ और उससे जुड़े चक्रवाती प्रभाव के कारण मौसम में बदलाव देखा जा रहा है। देश के उत्तर-पश्चिमी इलाकों समेत कई हिस्सों में बीते कुछ दिनों से मौसम ने करवट ली है। आंधी-तूफान और बारिश के कारण इन इलाकों में गर्मी से राहत महसूस की जा रही है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार यह बदलाव मुख्य रूप से एक सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ और उससे जुड़े चक्रवाती प्रभाव के कारण है, जो वर्तमान में मध्य पाकिस्तान और उससे सटे पंजाब व उत्तर-पश्चिम राजस्थान पर केंद्रित है। इसके अलावा मौसम के इस बदलाव के लिए एक साथ सक्रिय हुई स्थानीय और वैश्विक मौसमी प्रणालियां जिम्मेदार हैं। राजस्थान के ऊपर मौजूद दो चक्रवाती परिसंचरण और अरब सागर और पूर्वी तट पर बने प्रति-चक्रवात मिलकर पूरे उत्तर पश्चिम भारत में मौसमी गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार हैं। चक्रवाती परिसंचरण हवा का वह घेरा होता है, जो कम दबाव वाले क्षेत्र के चारों ओर घूमता है।इससे बारिश और तूफान आते हैं। प्रतिचक्रवात एक ऐसा क्षेत्र होता है जहां वायुमंडलीय दबाव ज्यादा होता है और हवाएं नीचे की ओर बहती हैं।
जलवायु परिवर्तन के कारण:
1. ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन: औद्योगिकीकरण, वाहन उत्सर्जन और कृषि गतिविधियों के कारण वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन जैसी गैसों की मात्रा बढ़ गई है।
2. वनों की कटाई: वनों की अंधाधुंध कटाई से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने की प्राकृतिक प्रक्रिया बाधित हुई है।
3. तेजी से हो रहा शहरीकरण: कंक्रीट के जंगलों ने हरियाली को नष्ट किया है, जिससे तापमान बढ़ा है और वर्षा चक्र में बदलाव आया है।
प्रभाव – भारत में बढ़ती प्राकृतिक आपदाएँ:
1. बाढ़: असम, बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्य हर साल बाढ़ की चपेट में आते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून अनियमित हो गया है जिससे अचानक भारी वर्षा होती है।
2. सूखा: महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे क्षेत्रों में बारिश की कमी से सूखा पड़ता है जिससे कृषि प्रभावित होती है।
3. हीटवेव: गर्मियों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाता है, जिससे मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
4. चक्रवात: बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में चक्रवातों की संख्या और तीव्रता बढ़ी है, जैसे अम्फान, ताऊते, यास आदि।
5. हिमालय क्षेत्र में भूस्खलन और ग्लेशियर पिघलना: उत्तराखंड और हिमाचल में भूस्खलन बढ़े हैं, और ग्लेशियरों के पिघलने से जल स्रोत अस्थिर हो रहे हैं।
सरकार की पहल :
- राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (NAPCC)
- अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) का नेतृत्व
- स्वच्छ भारत मिशन और उज्ज्वला योजना जैसी पर्यावरण सुधार पहलें
- हरित ऊर्जा में निवेश: सौर, पवन और जलविद्युत
- समाधान और जन भागीदारी:
- वृक्षारोपण को बढ़ावा देना
- हरित ऊर्जा का उपयोग करना
- प्लास्टिक और कार्बन उत्सर्जन में कटौती
- जन जागरूकता अभियान चलाना
- जल और ऊर्जा संरक्षण में आम जनता की भूमिका सुनिश्चित करना
जलवायु परिवर्तन एक गंभीर संकट है जो प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और प्रभाव को बढ़ा रहा है। इससे निपटने के लिए सरकार, वैज्ञानिक समुदाय और आम नागरिकों को मिलकर काम करना होगा। सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाना ही भारत के भविष्य को सुरक्षित कर सकता है।
लेखक के ये अपने विचार हैं।
विद्यार्थी, सेज यूनिवर्सिटी, इन्दौर
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