भोपाल। मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित बहुविध कलानुशासनों की गतिविधियों एकाग्र ‘गमक’ श्रृंखला अंतर्गत आदिवासी लोककला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा सुश्री विद्या राव एवं साथी- उज्जैन द्वारा ‘मालवी गायन’ एवं श्री चरणसिंह एवं साथी- डिंडोरी द्वारा बैगा जनजातीय नृत्य ‘करमा, घोड़ी पैठाई एवं फाग’ की प्रस्तुति हुई।
प्रस्तुति की शुरुआत सुश्री विद्या राव एवं साथियों द्वारा मालवी गायन से हुई- जिसमें- गणेश वंदना ‘चालो गजानन’, भैरव वंदना- ‘कांकड़ रा भेरू’, माता का भजन- ‘कंकुड़ा से भरी’, मेंहदी गीत- ‘मेंहदी बाई-बाई’, हल्दी गीत- ‘म्हारी हल्दी रो रंग’, बना गीत- ‘बना मोर पपईया’, बनी गीत- ‘बनी भाम्मार पेरिया’, सेहरा गीत- ‘जोशीड़ा री गलियां’, मायरा- ‘वीरा रमा-झमा से’, बधावा- ‘कणी राई री हवेली’ एवं गाली गीत- ‘ब्याजी तो म्हारा’ आदि मालवांचल के पारंपरिक गीत प्रस्तुत किये।
प्रस्तुति में मंच पर- सह गायन में- श्रीमति कला बाई राव, सुश्री हेमलता वर्मा एवं श्रीमति माया वर्मा और ढोलक पर- श्री यशपाल बावरा, हारमोनियम पर- श्री लालुराम चौहान एवं मंजीरा और खंजरी पर श्री धीरेन्द्र वर्मा ने संगत दी।
सुश्री विद्या राव का बचपन से ही भजन गायन और संगीत में रुझान था। माता-पिता के सानिध्य में गायन में आपकी रूचि बढ़ती गई। आपने मालवा माच के प्रणेता गुरु श्री सिद्धेश्वर सेन के मार्गदर्शन में मलिला माच गायन में भी अपना वर्चस्व स्थापित किया है। आपने देश के विभिन्न प्रतिष्ठित मंचों पर मालवी लोकगायन, भजन और पारंपरिक गीतों की प्रस्तुति दे चुकी हैं।
दूसरी प्रस्तुति श्री चरणसिंह पचगैयां एवं साथियों द्वारा बैगा जनजातीय नृत्य ‘करमा, घोड़ी पैठाई एवं फाग’ की हुई। करमा नृत्य में बैगा अपने ‘कर्म’ को नृत्य-गीत के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं, इसी कारण इस नृत्य-गीत को करमा कहा जाता है। विजयादशमी से वर्षा के प्रारंभ होने तक चलने वाला यह नृत्य बैगा युवक-युवतियाँ टोली बनाकर एक दूसरे के गाँव जा जाकर करते हैं।
घोड़ी पैठाई नृत्य दशहरे के दिन से शुरू होकर दिसंबर के अंत तक किया जाने वाला नृत्य है। फाग नृत्य-फाग के दिन से 13 दिनों तक किया जाता है। इस नृत्य में मुख्य वाद्ययंत्र मादर, टिमकी और बाँसुरी होते हैं।
मंच पर श्री चरणसिंह के साथ अमरसिंह, महेलाल, सुकरू सिंह, विश्राम धुर्वे, ईश्वर, शिवप्रसाद, दिलीप कुमार, देवान सिंह, आनंद सिंह, पार्वती, अगहनी बाई, योगवती, नर्बदिया और तिहरो बाई ने नर्तन किया।
गतिविधियों का सजीव प्रसारण संग्रहालय के सोशल मीडिया प्लेटफार्म यूट्यूब
http://bit.ly/culturempYT और फेसबुक पेज https://www.facebook.com/culturempbpl/live/ पर भी किया गया।