स्वयं प्रकाशित होने के साथ दूसरों के लिए प्रकाश स्तंभ बन जगमगाएं

बुद्ध जयंती पर विशेष लेख

– संदीप सृजन

आज भगवान गौतम बुद्ध के जन्म, बुद्धत्व-प्राप्ति और महापरिनिर्वाण का दिन हैं। बुद्ध के जीवन की तीन घटनाएँ या कहे कि आत्मा के परमात्मा होने की त्रिवेणी का दिवस है। भारत की अति-प्राचीन ज्ञान परंपरा में जन्म और मृत्यु पर पहले से ही अथाह चिंतन होता चला आ रहा था। लेकिन भगवान गौतम बुद्ध ने उस चिंतन को अपनी आत्म-साधना और आत्मानुभूति की कसौटी पर कसने की कोशिश की। उन्होने किसी भी विचार को सत्य मानने से पहले उसे कसौटी पर कसने की हमारी पुरातन परंपरा को मजबूत किया।

हमारे वैदिक शास्त्रों में भी ऋषियों ने कहा गया है – ‘यान्यनवद्यानि कर्माणि। तानि सेवितव्यानि। नो इतराणि। यान्यस्माकं सुचरितानि। तानि त्वयोपास्यानि।।’ यानी हमने जो तुम्हें शिक्षा दी उसे ही पूरी तरह अनुकरणीय सत्य नहीं मान लेना। उसे अपने विवेक की कसौटी पर कसना। फिर तय करना कि यह अनुकरणीय है या नहीं। बुद्ध किसी भी सत्य को स्वयं परखने और हासिल कर लेने की बात करते थे। उन्होंने सबसे पहली बात यही कही कि न तो मुझे किसी और ने मुक्ति दी है और न ही मैं किसी दूसरे को मोक्ष देने की बात करता हूं। यह सबको अपनी ही अनुभूति से प्राप्त होगी।

वे अपने शिष्य धोतक को संबोधित करते हुए कहते है- “नाहं गमिस्सामि पमोचनाय, कथङ्कथिं धोतक कञ्चि लोके। धम्मं च सेट्ठं अभिजानमानो, एवं तुवं ओघमिमं तरेसी।” यानी मैं किसी संशयी को मुक्त करने नहीं जाता। जब तुम इस श्रेष्ठ धर्म को स्वयं अपने अनुभव से जान लोगे, तो अपने आप इस बाढ़ से पार हो जाओगे। तुम्हारे मन का संशय न तो किसी व्यक्ति या विचार के प्रति अंधश्रद्धा से दूर होगा और न तर्क-वितर्क से। यह प्रत्यक्ष अनुभूति तो तुम्हें स्वयं करनी पड़ेगी। स्वयं को देखना होगा, पहचानना होगा।

भगवान गौतम बुद्ध ने अपने प्रिय शिष्य आनन्द से उसके यह पूछने पर कि जब सत्य का मार्ग दिखाने के लिए आप या कोई आप जैसा पृथ्वी पर नहीं होगा तब हम कैसे अपने जीवन को दिशा दे सकेंगे? तो भगवान बुद्ध ने ये जवाब दिया था – “अप्प दीपो भव” अर्थात अपना दीपक स्वयं बनो। कोई भी किसी के पथ के लिए सदैव मार्ग प्रशस्त नहीं कर सकता केवल आत्मज्ञान के प्रकाश से ही हम सत्य के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं। भगवान बुद्ध ने कहा, तुम मुझे अपनी बैसाखी मत बनाना। तुम अगर लंगड़े हो, और मेरी बैसाखी के सहारे चल लिए-कितनी दूर चलोगे? मंजिल तक न पहुंच पाओगे। आज मैं साथ हूं, कल मैं साथ न रहूंगा, फिर तुम्हें अपने ही पैरों पर चलना है। मेरी साथ की रोशनी से मत चलना क्योंकि थोड़ी देर को संग-साथ हो गया है अंधेरे जंगल में। तुम मेरी रोशनी में थोड़ी देर रोशन हो लोगे, फिर हमारे रास्ते अलग हो जाएंगे। मेरी रोशनी मेरे साथ होगी, तुम्हारा अंधेरा तुम्हारे साथ होगा। अपनी रोशनी पैदा करो। अप्प दीपो भव!

बुद्ध के कहने का मतलब यह है कि किसी दूसरे से उम्मीद लगाने की बजाये अपना प्रकाश (प्रेरणा) स्वयं बनो। स्वयं तो प्रकाशित हों ही, दूसरों के लिए भी एक प्रकाश स्तंभ की तरह जगमगाते रहो। भगवान बुद्ध ने संसार के इस रहस्य को सर्वसुलभ कर दिया कि अब कोई भी बुद्ध बन सकता था। जो ज्ञान मार्ग का पथिक है। जिसमें विवेक की कसौटी है। जो अपने अंतर में झांक सकने का साहस कर सकता है,वह बुद्धत्व को प्राप्त कर सकता है। सरल शब्दों में कहें तो उन्होंने मुक्ति या मोक्ष का लोकतंत्रीकरण कर दिया। हर व्यक्ति परमात्मा बन सकता है। उनके इस सकारात्मक अनुभव मात्र से कई पुरानी मान्यताएं और रुढ़ियां अपने आप ध्वस्त होने लगती है।

बुद्ध को जिस साधना से बोधि की प्राप्ति हुई उसे विपश्यना कहते हैं। विपश्यना या विपश्यना यानी आत्मनिरीक्षण के लिए अपने भीतर की ओर देखना। बुद्ध ने इस विद्या को भी अपना आविष्कार या उपलब्धि नहीं माना। उन्होंने बस इतना कहा कि मुझसे पहले के जिन बुद्धों ने, अर्हतों ने जिस तरह स्वयं को जाना था, मैंने भी उसी विधि से स्वयं को जान लिया है। मुझे उस तरीके का ज्ञान हो गया है। तुम चाहो तो तुम्हें भी मैं वह तरीका बता सकता हूं। जिस तरह मुझमें यह मैत्री जागी है, वैसे ही तुममें भी यह मैत्री जाग जाए। तुम भी बुद्ध बन जाओ। और फिर तुम भी बुद्ध बनने का यह मार्ग सबको बताओ।

संपादक-शाश्वत सृजन
ए-99 वी.डी. मार्केट, उज्जैन (म.प्र.)
मो. 9406649733

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *