यतीन्द्र अत्रे
गुरु शिष्य परंपरा हमारे देश की पहचान रही है कहा जाता है, कि एक अच्छे शिक्षक का पूरा जीवन अपने शिष्यों को सवारने में ही व्यतीत होता है। कुछ शिक्षक अपने पढ़ाई के तरीके से जाने जाते हैं तो कुछ अपने सहज सरल स्वभाव के कारण छात्रों में चर्चित होते हैं। संभवतः इसीलिए ऐसे व्यक्तियों के चले जाने के बाद भी वे दूसरों के विचारों में वर्षों तक याद किए जाते हैं। पिछले दिनों एक ऐसे ही शिक्षक जो कि उनके छात्रों द्वारा दी गई पीपी सर की उपाधि से विभूषित थे अचानक सब को छोड़कर चले गए। चाहे पत्रकारिता से जुड़ा व्यक्ति हो या सामाजिक सरोकार या फिर कोई रंगकर्मी जो पुष्पेंद्र जी से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष जुड़ा रहा हो यह खबर सुनने के बाद वे सभी स्तब्ध थे। प्रदेश की पत्रकारिता में जाना पहचाना नाम पुष्पेंद्र पाल सिंह जो कि एक प्रतिष्ठित पत्रकार होने के साथ ‘रोजगार निर्माण’ के संपादक थे साथ ही पत्रकारिता में कैरियर बना चुके या अध्ययनरत छात्रों में पीपी सर के नाम से मशहूर थे। पुष्पेंद्र जी विशेष रूप से अपने सरल स्वभाव के कारण पत्रकारिता जगत में जाने जाते थे। यही कारण रहा होगा कि उनके ना रहने पर आयोजित श्रद्धांजलि सभाओं में उन्हें याद करने का सिलसिला अभी भी थम नहीं रहा है। उनके व्यक्तित्व के साथ कृतित्व पर यदि हम दृष्टि डालें तो पुष्पेंद्र माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष रहे, वर्ष 2015 में मध्य प्रदेश जनसंपर्क विभाग में मुख्यमंत्री के ओएसडी नियुक्त हुए, उनकी तीन पुस्तकें जनसंपर्क बदलते आयाम, पर्यटन लेखन,तथा देश समाज और गांधी अत्यधिक चर्चा में रही। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए ट्वीट करते हुए पुष्पेन्द्र जी को हिंदी पत्रकारिता जगत के लिए बड़ी क्षति बताया है। उन्होंने लिखा कि – पुष्पेंद्र अपने आप में पत्रकारिता का एक संस्थान थे। समाचार पत्र, सोशल मीडिया एवं अनेक माध्यमों से उनसे जुड़े अनेक गणमान्य नागरिकों, उनके चाहने वाले अनेक पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं,विद्यार्थियों ने उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर अपने भाव व्यक्त करते हुए उन्हें आदरांजली अर्पित की है। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन दिल्ली के प्रोफेसर आनंद प्रधान ने पुष्पेंद्र जी को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि मेरे लिए वे भोपाल का मतलब थे, पीपी संबंधों को निभाना जानते थे। साहित्य अकादमी के निदेशक डॉक्टर विकास दवे ने कहा कि- पुष्पेंद्र पाल सिंह का यूं अचानक ‘है‘ से ‘थे’ हो जाना हजम नहीं हुआ, वे मुख्यमंत्री के मीडिया और माध्यम जैसे संस्थानों के पर्याय बन गए थे। पुष्पेंद्र पत्रकारिता के छात्रों के अतिरिक्त सामाजिक, नागरिक, संगठनों के सभाओं में भी देखे जाते थे। रंगमंच समारोह में भी अक्सर पीपी सर रंगकर्मियों को प्रोत्साहित करते हुए दिखाई दे जाते थे। उनकी मिलन सरिता के कारण उनसे जुड़ने वाला व्यक्ति शीघ्र ही उनके निकट आ जाता था और पुष्पेंद्र जी की आदत में भी शुमार होता कि वह भी किसी प्रकार के कार्य को कभी मना नहीं करते, किसी के निमंत्रण को सहज ही स्वीकारना उनके स्वभाव में सम्मिलित था। अचानक हमारे बीच से उनके चले जाने की वजह भी संभवतः यमराज के निमंत्रण को सहज रूप में स्वीकार कर लेना ही होगा। पीपी सर के लिए आयोजित श्रध्दांजलि सभा मे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ने पीपी सर को याद रखने के उद्देश्य से एक कक्ष का नाम उन्हें समर्पित किया है। पुष्पेंद्र जी के ठहाके तो अब किसी समारोह में हमे सुनाई नहीं देंगे किन्तु उनके व्यक्तित्व की अनुभूति और जिंदादिली हमेशा हम सब के विचारों में वर्षों तक विराजमान रहेगी। उन्हें विनम्र श्रध्दांजलि।
मो.: 9425004536
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