डॉ. योगिता सिंह राठौड़
मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में आज से तीन दिवसीय जैविक महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। जिसका उद्देश्य मुख्य रूप से जैविक रूप से उत्पादित वस्तुओं के प्रयोग को बढ़ावा देना है।
आज के समय में जब बढ़ती बीमारियाँ, प्रदूषण और पर्यावरण असंतुलन मानव जीवन के लिए गंभीर चुनौती बनते जा रहे हैं, तब जैविक खेती और जैविक उत्पाद आशा की एक मजबूत किरण के रूप में उभरकर सामने आए हैं। इसी संदर्भ में आयोजित जैविक महोत्सव केवल एक प्रदर्शनी या उत्सव नहीं, बल्कि रसायन मुक्त भारत की दिशा में एक सार्थक सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय पहल है। यह महोत्सव किसानों, उपभोक्ताओं, वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं को एक मंच पर लाकर स्वस्थ भविष्य की रूपरेखा तैयार करता है।
हरित क्रांति ने देश को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर अवश्य बनाया, परंतु इसके साथ ही रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और खरपतवारनाशकों के अत्यधिक उपयोग ने मिट्टी की उर्वरता, जल स्रोतों और मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। कैंसर, त्वचा रोग, पाचन संबंधी समस्याएँ और हार्मोन असंतुलन जैसी बीमारियाँ कहीं न कहीं रसायन युक्त खाद्य पदार्थों से जुड़ी मानी जा रही हैं। ऐसे में जैविक महोत्सव यह संदेश देता है कि उत्पादन की मात्रा से अधिक जीवन की गुणवत्ता महत्वपूर्ण है।
जैविक महोत्सव का सबसे बड़ा उद्देश्य जैविक खेती के प्रति जन-जागरूकता बढ़ाना है। इसमें किसानों को प्राकृतिक खाद, जीवामृत, वर्मी कम्पोस्ट, हरी खाद, नीम आधारित कीटनाशकों और पारंपरिक कृषि पद्धतियों की जानकारी दी जाती है। साथ ही उपभोक्ताओं को यह समझाया जाता है कि जैविक उत्पाद भले ही थोड़े महंगे हों, परंतु वे स्वास्थ्य की दृष्टि से कहीं अधिक सुरक्षित और दीर्घकालीन लाभ देने वाले हैं। इस प्रकार यह महोत्सव किसान और उपभोक्ता के बीच विश्वास की सेतु बनता है।
रसायन मुक्त भारत की कल्पना तब तक साकार नहीं हो सकती, जब तक किसान आर्थिक रूप से सशक्त न हों। जैविक महोत्सव में जैविक उत्पादों की सीधी बिक्री, किसान-उपभोक्ता संवाद और विपणन की नई संभावनाएँ किसानों की आय बढ़ाने में सहायक सिद्ध होती हैं। इससे बिचौलियों की भूमिका कम होती है और किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य प्राप्त होता है। यह महोत्सव आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा को भी मजबूती प्रदान करता है।
पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भी जैविक महोत्सव अत्यंत महत्वपूर्ण है। जैविक खेती मिट्टी की जैव विविधता को संरक्षित रखती है, भूजल प्रदूषण को रोकती है और कार्बन उत्सर्जन को कम करने में सहायक होती है। रासायनिक खेती जहाँ भूमि को बंजर बनाने की ओर ले जाती है, वहीं जैविक खेती मिट्टी को जीवित रखने की प्रक्रिया है। जैविक महोत्सव के माध्यम से यह संदेश जन-जन तक पहुँचाया जाता है कि प्रकृति का संरक्षण केवल पर्यावरणविदों का दायित्व नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है।
जैविक महोत्सव का एक महत्वपूर्ण पक्ष पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का समन्वय है। हमारे पूर्वज प्राकृतिक खेती के सिद्धांतों को अपनाकर ही खेती करते थे। आज वैज्ञानिक शोध उन पारंपरिक विधियों की उपयोगिता को प्रमाणित कर रहे हैं। महोत्सव में विशेषज्ञों के व्याख्यान, कार्यशालाएँ और प्रशिक्षण कार्यक्रम इस ज्ञान को नई पीढ़ी तक पहुँचाने का कार्य करते हैं। इससे युवा वर्ग भी खेती को सम्मानजनक और लाभकारी पेशे के रूप में देखने लगता है।
हालाँकि जैविक खेती की राह आसान नहीं है। उत्पादन में प्रारंभिक गिरावट, प्रमाणन की जटिल प्रक्रिया और बाजार की सीमित पहुँच जैसी चुनौतियाँ मौजूद हैं। लेकिन जैविक महोत्सव इन समस्याओं पर खुली चर्चा का मंच प्रदान करता है और सरकार, संस्थाओं तथा समाज को समाधान की दिशा में सोचने के लिए प्रेरित करता है। यदि नीतिगत समर्थन, तकनीकी मार्गदर्शन और उपभोक्ता सहयोग मिले, तो रसायन मुक्त भारत का सपना अवश्य साकार हो सकता है।
अंततः कहा जा सकता है कि जैविक महोत्सव केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि एक जनआंदोलन का स्वरूप है। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम कैसा भोजन कर रहे हैं, कैसी खेती को बढ़ावा दे रहे हैं और आने वाली पीढ़ियों को कैसा पर्यावरण सौंपना चाहते हैं। रसायन मुक्त भारत की पहल तभी सफल होगी, जब किसान, उपभोक्ता और सरकार मिलकर जैविक जीवनशैली को अपनाएँ। जैविक महोत्सव इसी सामूहिक चेतना को जागृत करने का सशक्त माध्यम है और एक स्वस्थ, स्वच्छ तथा सतत भारत की दिशा में महत्वपूर्ण कदम भी।

















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