लेखक से मिलिए कार्यक्रम के अंतर्गत पाँच पुस्तकें हुई लोकार्पित

भोपाल। विश्व रंग के अंतर्गत आईसेक्ट पब्लिकेशन, वनमाली सृजन पीठ और स्कोप ग्लोबल स्किल यूनिवर्सिटी द्वारा विश्वविद्यालय परिसर में स्थित वनमाली सभागार में पुस्तक लोकार्पण तथा ‘लेखक से मिलिए’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। आईसेक्ट पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक लोकार्पण की श्रृंखला में इस बार भोपाल के तीन लेखकों की पांच पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर डॉ. मीनू पांडे का कविता संग्रह ‘देव तुम्हारे लिए’, श्री जगदीश मालवीय का कविता संग्रह ‘काव्य तरंगिणी’ और श्रीमती मनोरमा श्रीवास्तव के तीन उपन्यास ‘दिल ने फिर याद किया’, ‘आसमान अपने अपने’ और ‘चिराग दिल का जलाओ’ का विमोचन हुआ। यह कार्यक्रम श्री संतोष चौबे, वरिष्ठ कवि-कथाकार, निदेशक, विश्व रंग एवं कुलाधिपति, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय की अध्यक्षता और श्री मुकेश वर्मा, वरिष्ठ कथाकार एवं अध्यक्ष, वनमाली सृजन पीठ, भोपाल के मुख्य आतिथ्य में आयोजित किया गया। सर्वप्रथम अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन और माँ शारदा की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ किया गया। पुस्तक लोकार्पण के अवसर पर आइसेक्ट पब्लिकेशन के प्रसार प्रबंधक, श्री महीप निगम ने संचालन किया तथा स्वागत उद्बोधन एवं संयोजन सुश्री ज्योति रघुवंशी ने किया। लेखक से मिलिए कार्यक्रम में सबसे पहले डॉ. मीनू पांडे की कविता संग्रह ‘देव तुम्हारे लिए’ का लोकार्पण किया गया। डॉ. मीनू पांडे ने अपनी कुछ कविताओं का पाठ करते हुए अपनी पुस्तक की रचना प्रक्रिया पर भी बात की। उन्होंने बताया कि इस कविता संग्रह में 160 रचनाएं हैं और वे सभी प्रेम के अलग-अलग पहलुओं पर प्रकाश डालती हैं। अपनी एक कविता में वह कहती है कि तुम्हारा प्रेम बोगन वेलिया की तरह लगता है’। इस तरह अपनी अन्य कविताओं के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि यह उनका चौथा कविता संग्रह है। डॉ. मीनू पांडे के कविता संग्रह की समीक्षा करते हुए श्री मुजफ्फर सिद्दीकी ने कहा कि मीनू पांडे की कविताओं को पढ़ने के लिए एक रूमानी तेवर की जरूरत है। उनकी कविताओं में लौकिक और अलौकिक प्रेम की अनुभूति महसूस होती है। उन्होंने अपनी समीक्षा के दौरान बताया कि मीनू पांडे की कविताओं में ‘नेह’ शब्द अलग-अलग तरीके से दिखाई देता है। श्री सिद्दीकी ने कहा कि इस कविता संग्रह में छंद बद्ध कविताएं, छंद मुक्त कविताएं और गज़ल भी शामिल हैं जो इस संग्रह को अलग बनाती है। इसके पश्चात श्री जगदीश मालवीय के कविता संग्रह ‘काव्य तरंगिणी’ का लोकार्पण किया गया। श्री जगदीश मालवीय ने अपनी कुछ कविताओं का पाठ किया और साथ ही अपनी किताब का परिचय भी दिया। ‘काव्य तरंगिणी’ के बारे में बताते हुए श्री मालवीय ने कहा कि यह पुस्तक पांच भागों में विभाजित है। जैसे जीवन में बाल्य काल से होते हुए व्यक्ति वृद्धावस्था की ओर बढ़ता है उसी तरह उनके काव्य संग्रह में कविताएं इन पांचों अवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करती है। श्री मालवीय के कविता संग्रह में छंद बद्ध के साथ-साथ छंद मुक्त कविताएं भी शामिल है जो राष्ट्र प्रेम की भावना संप्रेषित करती है। अपनी एक कविता में सृजन की प्रक्रिया को विस्तार से अभिव्यक्त करते हुए वह कहते हैं ‘तुमको भी सहन पड़ेगी पीड़ा सृजन की’। पुस्तक लोकार्पण की श्रांखला में श्रामती मनोरमा श्रीवास्तव के तीन उपन्यासों का लोकार्पण किया गया जिनका नाम है ‘दिल ने फिर याद किया’, ‘आसमान अपने अपने’ और ‘चिराग दिल का जलाओ’। अपने उपन्यासों की रचना प्रक्रिया पर बात करते हुए श्रीमती मनोरमा श्रीवास्तव ने बताया कि वे फिल्मी गानों से बहुत प्रभावित हैं इसलिए उनकी कहानियों में हिंदी सिनेमा के कई गीत उल्लेखित हैं। उन्होंने कहा कि उनके तीनों उपन्यासों में सदाचार संस्कार और देशभक्ति की ध्वनि सुनाई पड़ती है। उन्होंने बताया कि इन तीनों उपन्यासों में उन्होंने जगह-जगह पर अपनी कविताओं का भी प्रयोग किया है। एक और रुचिकर बात साझा करते हुए उन्होंने कहा कि तीनों उपन्यासों के मुख्य पृष्ठ उन्होंने खुद ही तैयार किए हैं। श्रीमती मनोरमा श्रीवास्तव के उपन्यासों पर समीक्षा करते हुए श्रीमती मनोरमा पंत ने इस बात का उल्लेख किया कि इन उपन्यासों को पढ़ाते हुए एक पाठक अनेक गीतों को याद करता हुआ चलेगा। श्रीमती पंत ने कहा कि यह बहुत ही सराहनीय भी है और चौंकाने वाली बात भी है कि मनोरमा जी ने इतनी जल्दी तीन उपन्यास लिखे भी और प्रकाशित भी किए। श्रीमती पंत ने बताया कि किसी भी उपन्यास को लिखना बहुत कठिन होता है क्योंकि बहुत बारीकी से अपने पात्रों के जीवन और उनके कार्य की समझ लेखक के पास होना बहुत जरूरी है। श्रीमती पंत ने कहा कि पाठकों को अपने पात्रों के इर्द-गिर्द का जीवन और उनसे जुड़े हुए व्यवसाय का ज्ञान बहुत ही स्पष्ट रूप से पढ़ने का अवसर मिलेगा।

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