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खूब भरो है मेला – फिर भी दद्दा हम अकेले हैं

स्मृति शेष

4 मई 2023 बुंदेली के लोक पुरुष, वरिष्ठ कवि / कहानीकार और मध्यप्रदेश लेखक संघ के संस्थापक आदरणीय बटुक दद्दा का 90 वाँ जन्म दिन है, ४ मई १९३३ को भेलसा (विदिशा) में जन्मे आदरणीय दादा सूचना एवम जनसंपर्क विभाग में  प्रशासनिक अधिकारी रहे । उनके अंदर लोक की गहरी समझ थी, म प्र लेखक संघ की स्थापना का मुख्य विचार बिंदु” लोक के साहित्यकारों /सर्जकों को प्रदेश पटल तक लाना था। और दादा ने ये ही किया उन्होंने अनेक गाँवों, कस्बों के साहित्यकारों को राजधानी से जोड़ा और उनकी  साहित्य सर्जना से अवगत करवाया,और उनकी पुस्तकों पर विधा अनुसार वार्षिक सम्मेलन में उन्हे समारोहपूर्वक सम्मानित/ अलंकृत किया गया।लेखक संघ  की विविध आयामी गोष्ठियों में साहित्यकारों को आमंत्रित करना उन्हे एक तरफ का मार्ग व्यय देना, उन्हे भोपाल में रुकवाना भोजन आदि की व्यवस्था करना आदि उनके नियम धर्म में रहा ।

ऐसा करके आ. दादा ने राजधानी और शहर के अनेक ऊंटो को पहाड़ के नीचे खड़ा किया, आ दादा अधिकांश साहित्यकारों को नाम से जानते थे।आज भी जब कस्बों के सृजन कारों को दोयम दृष्टि से देखा जाता है उन्होंने ४५ बरस पूर्व ही यह महत्व पूर्ण करिश्मा कर दिखाया। सार्वजनिक साहित्यिक कार्यक्रमों में आ दादा ने कभी भी पारिश्रमिक की मांग नहीं की, हां स्वास्थ की दृष्टि से वे उचित मार्ग साधन की बात करते थे।राजधानी में साहित्यकारों के हित में वे सदैव अपनी तर्क पूर्ण बात रखते थे। वे लोक बोलियों के प्रति पूर्ण आत्मीय प्रेम रखते थे। बुन्देली के गीतों की मिठास उनके कंठ में रची बसी थी,

वे लोक चेतना के प्रति सदैव सजग रहे, जो उनके साहित्य और गीतों में बरबस झलकती थी

भैय्या क्यूं भूले हम अपने तीज और त्यौहार

भैया क्यूं भूले,

उनसे मेरा आत्मीय रिश्ता था, ऐसा न केवल मैं वरन प्रदेश के अनेक साहित्यकार अनुभूत करते हैं। हम सबके दादा आ बटुक जी चतुवेर्दी के ९० वें जन्म दिन पर उनकी भावभीनी याद।

शिशिर उपाध्याय

मो. – 9926021888

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