बैंक का चक्कर, लोन में घनचक्कर

व्यंग्य लेख , सुनील उपमन्यु

डब्बन भैय्ये काहे चिंतित हो? अच्छे भले दिख रहे हो, फिर काहे रोतलो मुंह बना के बैठे हो। डब्बन भैय्या बोले-का बताये सुकिया भाभी छोटो-मोटो प्लाट हमारी जोरो ने खरीद लओ थो, उसको बनवाने के खातिर बैंक चले गए, किस्मत फुटली जो परेशान करने वाली, नियम बताने वाली बैंक में जा फंसे। बैंक में बैठे रहे बैठे रहे, कोई बात ही नी करे। जैसे तैसे किसी ने बताया वो बैंक को लोन बाबू बैठे हे, बस हमने जा कर कह दिया कि बाबूजी नमस्ते ।

बाबूजी ने डांटते बोला-मैं बाबू नही,मैं लोन आफिसर हूँ। तुम्हे अफसर व बाबू में फर्क नही दिखता।

डब्बन भैय्या घबरा गए, बोले -गलती हो गयी साहब जी। हमे प्लाटवा पे घर बनाने के लाने लोन चाहिए, छोटी-मोटी, सरकारी नोकरी करते है।

लोन अधिकारी ने कहा-अभी जाओ हमारा- काउंसलर आएगा उससे बात करना।

डब्बन भैय्या घर आ गए, लोगों से पूछा-जे काउंसलर का बला होत है।

तो रिटायर्ड बैंक बाबू ने जवाब दिया। काउंसलर याने सलाहकार/काम कराने वाला व्यक्ति-झट डब्बन भैय्या को सारी बात समझ में आ गयी।

सलाहकार शब्द ही ऐसा होता है कि हर कोई उसको भलीभांति समझ जाता है।

दौड़ दौड़ के डब्बन भैय्ये के चप्पल घिस गए था, बैंक में कभी काउंसलर मिलता तो कभी अफसर।

कुछ दस्तावेज बताने में काउंसलर ने कमी की तो कुछ कमी ऑफिसर ने छुड़वा दी, जब भी कागज लेकर डब्बन भैय्या बैंक पहुंचे तो कोई न कोई कागज की कमी बता कर वापिस कर दिया।

दो तीन महीने तो काउंसलर/ऑफिसर ने नियमों का हवाला दे कर परेशान कर डाला। जो काम दूसरी बैंकों में आसानी से व अधिकारी कर्मचारी के सहयोग से तत्काल निपट जाते है,यहाँ नियमों का हवाला देकर देरी की जाती है। जैसे तैसे डब्बन भैय्या ने सारे कागज  काउंसलर को दिए व यह वादा किया कि मैं तुमसे बाहर नही हूँ। जो भी होगा निपट लेंगे, इन शब्दों ने चमत्कार कर दिया- बस लोन के कागज चले गए हेड ऑफिस। हेड ऑफिस से खुश खबरी। लोन स्वीकृत। मरता क्या न करता। डब्बन भैय्या ने अपनी चप्पल देखी, जो पूरी घिस चुकी थी बैंक दौड़ दौड़ के। पास खड़े बब्बन भैय्या बोले -अरे डब्बन, तुम तो किस्मत वाले हो जो तुम्हारी एक ही जोड़ चप्पल घिसी व अभी भी चलन में है। मेरी तो ये दूसरी जोड़ है,फिर भी फाईल- काउंसलर व आफिसर के बीच अटकी है। जबकि काउंसलर कोई बैंक का नियमित कर्मचारी नही है, फिर भी बैंक अँधा- विश्वास उस पर करती है। शायद बैंक में काम ज्यादा है कर्मचारी कम, इसलिए इन्हें रख लेते हों। मैं तो भैय्या दूसरी बैंक में गया, चार कागज दिए व लोन मिल गया।

भगवान बचाये ऐसी कड़क नियम बताने वाली बैंक से।

पास खड़े अक्कन जी बोले-नही ऐसा नही है, इन्हें ऑडिट में आपत्ति आती है, इसलिए ये सारे कागज मांगते है। अब यह बात सही है कि, एक ही बार में सारी कार्यवाही करवा लेना चाहिए, ताकि ऋण लेने वाला परेशान न हो।

अक्कन की बात सुन बब्बन जोर से हँसे व डब्बन से बोले-डब्बन भैय्ये अभी तो आगे देखो होता क्या क्या है? इतना कह कर बब्बन चले गए ।

डब्बन अभी संभला भी नही था कि मोबाइल बजा, डब्बन ने कहा-बोले कौन ?

आवाज आई आप ने सम्पत्ति का माॅर्टगेज नही करवाया, आपको अब किश्त नही मिलेगी। डब्बन भैय्या बोले-साहब जी, कागज पत्तर तैयार करवा दे, सम्पत्ति पर काबिज वारसानों को शहर से बुलवा कर,दस्तखत करा गिरविनामा निष्पादित करवा देवेंगें। यदि मन से हम रजिस्ट्री लेकर जाएं, लिखवाये तो तुम्हारी बैंक ने आपत्ति लगा खारिज कर देना तो हम गरीब की तो लुटिया ही डूब गई ना।

डब्बन भैय्ये सोचने लगे एक अधिकारी कहता है कि हम कागज तैयार करेंगे,और ये का कहे, काउंसलर कहता है कि रजिस्ट्री लेकर चले जाओ कुछ भी समझ नही आता कि ये कौनसा खेल है, व किसकी सुने। अपूण ठहरे अनाड़ी का समझे।कितनो ने तो ठगों है, जा बैंक वालो भी ठग ले तो का परेशानी। अब डब्बन भईया के बच्चों को छुट्टी मिले नी, गिरवी नाम बने नी, मकान को निर्माण रुके तो रुक जाए।

अब का करे, जब अपनी किस्मत में ही चप्पल घिसानु लिखो हे तो किसी को का दोष दें । डब्बन भैय्या बोलेः-नियम, कानून कायदे अच्छी बात है, पर एक ही बार में समझा के सारी कार्यवाही हो तो किसी को भी कोई तकलीफ नही।

अब मकान निर्माण हो जाय तो सबसे बड़ो उपकार होगा बैंक को हम पर।

सम्पर्क: 24, जवाहरगंज वार्ड रामेश्वर रोड, खण्डवा (म.प्र.)

मो.: 9926496988

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