पौधरोपण से वृक्षारोपण तक

भारतीय संस्कृति में पर्यावरण को सदैव सर्वोपरि रखा गया है। यही कारण है कि ईश्वर को वृक्षों के साथ जोड़ा गया है। ऐसा माना जाता है कि पेड़-पौधों में ईश्वर का वास रहता है। उदाहरण के लिए केला, पीपल, बड़, आंवला व तुलसी की पूजन प्रतिदिन की जाती है। प्राचीन साहित्य में पौधरोपण और वृक्षों की देखभाल की पर्याप्त चर्चा की गयी है। चूंकि भारत की जलवायु गर्म है, इसलिए यहाँ आदिकाल से ही पौधरोपण को महत्व दिया गया है। शताब्दियों से हमारे यहाँ छाया देने वाले एवं शोभा देने वाले वृक्षों का महत्व रहा है। सड़कों के किनारे पेड़ लगाना एक पुनीत कार्य समझा जाता रहा है। किन्तु कुछ दशकों पूर्व से हमने इन्हीं वृक्षों को काटने में उदारता दिखाई है। जब धरती पर पर्यावरण का संकट गहराने लगा, तब फिर हमारी सोच में परिवर्तन आया और सम्पूर्ण विश्व के साथ हमने भी पर्यावरण के प्रति चिंता दर्शायी। आज हम बढ़ चढ़ कर पौधरोपण अभियान में हिस्सा लेते हैं। बच्चों के स्कूल कॉलेज से लेकर गली के नुक्कड़ तक सभी जगह पर्यावरण की चिंता होने लगी है। इतना ही नहीं आज हम पौधरोपण की महत्ता के साथ ओजोन की परत वायु मण्डल में कम होने का ज्ञाान भी बांटने लगे हैं। जिस प्रकार एक नवजात शिशु पूर्ण देखभाल के साथ व्यस्क होता है उसी तरह जब एक पौधे का रोपण किया जाता है और उसकी देखभाल की जाती है तब वह वृक्ष का रूप धारण करता है। सम्भवतः इसी प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप पूर्व में पौधरोपण को सीधे ही वृक्षारोपण कहा जाता रहा होगा। अब यदि हम हमारे सामान्य ज्ञाान की बात करें जिसमें जब हम वृक्षारोपण की बात करते हैं और प्रायोगिक रूप में करते हैं पौधरोपण, तो क्या हम यह मान लेते हैं कि हमारे द्वारा रोपित पौध आसानी से स्वतः ही वृक्ष में परिवर्तित हो जाएगा? हम यह भलीभांति जानते हैं कि एक शिशु को जिस प्रकार युवा बनने में पालन पोषण एवं संरक्षण की आवश्यकता होती है उसी प्रकार से एक नए पौधे को वृक्ष बनने में आवश्यकता होती हैं। किसी विशेषज्ञा से हम सम्बंधित विषय पर परामर्श लेंगे तो सम्भवतः हमें ज्ञाात होगा कि पौधरोपण समग्र वृक्षारोपण अभियान का एक चरण मात्र है उसके पश्चात उसे संरक्षण एवं संवर्धन की भी आवश्यकता होगी। संवर्धन से तात्पर्य यहाँ उसके प्रबंधन से है। कभी-कभी हमें वन विभाग और नगर निगम के कर्मचारी मार्ग पर लगे पौधों की शाखाओं की छटाई करते हुए दिखाई देते है जिससे आवागमन में सुविधा तो होती है साथ ही यह उद्देश्य भी सम्मिलित होता है कि पौधे या वृक्ष को समान रूप से पोषक तत्व प्राप्त होते रहें। यानि की यह उनके संवर्धन की एक प्रक्रिया होती हैं। तात्पर्य यह है कि- हमें पौधरोपण की इति श्राी से वृक्षारोपण की भ्रान्ति नहीं होनी चाहिए। आज पर्यावरण प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन चुका है और निश्चित रूप से इससे निपटने में वृक्षारोपण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। सरकार अपने स्तर पर तो प्रयास कर ही रही है, इम क्रम में नर्मदा सेवा यात्रा के साथ ही 2 जुलाई 2017 को म.प्र. सरकार ने 6 करोड़ से अधिक पौधे रोपित कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया था। एक नागरिक के तौर पर हम इस अभियान में किस तरह सहयोग कर सकते हैं, यह जानना महत्वपूर्ण होगा। हमें ऐसी स्वयं सेवी संस्थाओं की जानकारी होनी चाहिए जहाँ वृक्षारोपण का प्रशिक्षण प्राप्त हो साथ ही शासन स्तर पर भी ऐसी योजनाएं चलायी जा रही हों तो उसकी भी जानकारी हो। ज्यादा अच्छा होगा कि ऐसे अभियान जिसमें विश्व के साथ स्वयं के अस्तित्व को बचाने का प्रश्न हो- पौधरोपण के साथ उन्हें गोद लेने का भी संकल्प लें। यही इस अभियान की सार्थकता होगी और हमें भविष्य में वृक्ष काटे जाने की अपेक्षा पौधों से उनके वृक्ष बनने के समाचार प्रकाशित एवं प्रसारित होते दिखाई देंगे।

यतीन्द्र अत्रे

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