राम मंदिर, अनुच्छेद 370, तीन तलाक और सीएए. जैसे मुद्दों पर निर्णय होने के पश्चात केंद्र सरकार अब देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की तैयारी में दिखाएं दे रही है। केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने पिछले दिनों भोपाल में आयोजित सभा में इस बात के पुख्ता संकेत दिए हैं। उन्होंने यह भी बताया है उत्तराखंड में काॅमन सिविल कोड पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में लागू किया जा चुका है। उल्लेखनीय है कि समान नागरिक संहिता पूरे देश के लिए एक कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिए विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने के कानून में एकरूपता प्रदान करने का प्रावधान करती है। इस संबंध में संविधान के अनुच्छेद 44 में वर्णित भी है कि राज्य, भारत के पूरे नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा। लेकिन केंद्र सरकार की यह राह आसान नहीं होगी। कई विश्लेषकों का इस संबंध में मत है कि इसे केवल सांप्रदायिकता के संदर्भ में देखा जा रहा है। अनेकता में एकता लिए हमारे देश में वैसे तो परस्पर सभी धर्मों का सम्मान किया जाता रहा है, कई शहर तो गंगा जमुनी संस्कृति के नाम से भी जाने जाते रहे हैं, लेकिन जब भी कानूनी रूप में एकरूपता की बात आती है तब इसे राजनैतिक स्वार्थ सिद्धि के लिए सांप्रदायिकता का रंग दे दिया जाता है। सरकार का इस दिशा में यह प्रयास प्रशंसनीय है लेकिन इसमें सरकार को समाज एवं धर्म गुरुओं के माध्यम से जागरूकता लाना होगी। धार्मिक स्वतंत्रता संभवतः इसमें संवैधानिक बाघा हो सकती हैं लेकिन रूढ़िवादिता से ऊपर उठकर इसे लोकहित के रूप में स्थापित किया जाना चाहिए। सर्वप्रथम इससे संबंधित विषयों पर जटिल नियमों को सरल बनाना होगा और यह ध्यान देना होगा कि समान नागरिक कानून सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू हो चाहे वह किसी भी धर्म में विश्वास रखते हों। यह भरोसा दिलाया जाना आवश्यक होगा कि यह सब के भले के लिए है। यह कानून महिलाओं एवं बच्चों को विशेष रूप से सामाजिक सुरक्षा प्रदान करेगा, वहीं एक कानून होने के कारण आपसी समझ से विवाह के लिए धर्मपरिवर्तन करने के लिए दबाव नहीं होगा। समान दृष्टि वाले इस कानून से निश्चित रूप से से देश में राष्ट्रवादी भावना को भी बल मिलेगा।
मो.: 9425004536
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