यतीन्द्र अत्रे
शनिवार शाम 6:00 बजे भारतीय मीडिया चैनल से खबरें प्रसारित होने लगी कि भारत- पाक सीज़ फायर के लिए सहमत हुए हैं। उसके बाद से देश की तस्वीर बदलते हुए दिखाई देने लगी। चेहरे गर्व से भरे थे और समाचारों के अनुसार सीमावर्ती क्षेत्रों में राहत की सांस लेने वाली खबरें आ रही थी। लेकिन यही स्थिति कायम रहेगी यह भरोसा नहीं हो पा रहा था, क्योंकि यह दुनिया जानती है कि पाकिस्तान कहता कुछ है और करता कुछ… युद्ध से लाभ क्या होगा यह तो भविष्य तय करता है लेकिन हानि तुरंत दिखाई देने लगती है। यह भी सर्वथा सत्य है कि किसी भी राष्ट्र के लिए नागरिक सुरक्षा सर्वोपरि होती है। संभवतः भारत भी इसीलिए युद्ध विराम हेतु सहमत हुआ होगा। हालांकि कुछ पूर्व सैन्य प्रमुखों का यह कहना है कि भारत मजबूत स्थिति में था फिर कदम पीछे खींचना हैरान करने वाला निर्णय प्रतीत हुआ। सैन्य कार्यवाही का रुकना तो स्वागत योग्य कदम होगा,लेकिन आतंकवाद के कारण हम जान गंवाते रहे यह भी उचित नहीं होगा। हालांकि सामान्य तौर पर देखा जाए तो भारत की इस निर्णय में भी जीत ही कही जाएगी, चार दिन चली इस कार्रवाई में हमने जो हासिल किया वह भी कुछ कम नहीं है। आतंकवादियों को निशाना बनाते हुए पाकिस्तान के कईं सैनिक ठिकानों को तबाह करना इतिहास में बड़ी उपलब्धि में शामिल होगा। साथ ही पाकिस्तान की जनता को भी यह स्पष्ट संदेश देने का प्रयास किया गया है कि हमारा निशाना आम नागरिक नहीं थे, ना ही रहेंगे। सिर्फ आतंकवाद और उन्हें पनाह देने वाले ठिकाने हमारे दुश्मन होंगे। दो महिला सैन्य अधिकारियों द्वारा दुनिया को ऑपरेशन की जानकारी देना भी भारत के लिए गर्व का विषय कर रहा है। भारत ने सहमति भी इस शर्त पर जताई है कि अब आतंकी हमले को ‘एक्ट आफ वार’ माना जाएगा। चार दिन में आतंकी और सैन्य ठिकानों को घुटने पर लाकर भारत ने पाक को एक साफ संदेश दिया है कि आतंकवाद को अब सख्ती से कुचला जाएगा। 22 अप्रैल की पहलगाम घटना के बाद भारत में सख्ती दिखाई, एक्शन लिया और आतंकवाद के विरूद्ध ‘आपरेशन सिंदूर’ के माध्यम से दुनिया को एक सख्त संदेश दिया। अब यदि पाकिस्तान सहमति वाले निर्णय पर कायम रहता है( जिसकी संभावना बहुत कम है) तो फिर समय होगा हमने क्या खोया क्या पाया के लिए मंथन का…
यह चर्चा आरंभ हो इसके पूर्व यह तो तय माना जाना चाहिए कि पाकिस्तान भारत के विरुद्ध भविष्य में कुछ भी करने के पूर्व कईं बार सोचेगा। दबाव बनाए रखने के लिए सिंधु जल संधि, कूटनीतिक और वित्तीय प्रबंध भी पहले की तरह लागू रहेंगे। इस युद्ध के परिणाम पाकिस्तान को क्या भुगतने होंगे इस पर भी चर्चा जरूरी हो जाती है। वैसे भी अब पाकिस्तान की राजनीति में नए समीकरण सामने आने के समाचार आ रहे हैं। आर्मी चीफ असीम मुनीर की सरकार पर पहले से ज्यादा पकड़ होने की संभावना जताई जा रही है। इन सब के बीच अब बेनजीर भुट्टो की पार्टी के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो असीम मुनीर की पहली पसंद बनते दिखाई दे रहे हैं। इसी को लेकर तख्ता पलट की संभावनाएं भी जोर पकड़ रही हैं। उधर बलूचिस्तान का विरोध भी पाकिस्तान को सहना पड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति से अलग अलग होता नापाक इरादे रखने वाला पाकिस्तान खुद अपने ही देश की आवाम से भी घिरा दिखाई दे रहा है। वहां जो कुछ भी होगा उसे भारत को निश्चित रूप से लाभ ही होना है। होने वाले इन घटनाक्रमों के बावजूद पाकिस्तान पर प्रश्न चिन्ह लगाया जाना उचित होगा कि क्या वह वाकई में युद्ध विराम चाहता है ? अगले कुछ दिनों तक सतर्क रहते हुए उसकी गतिविधियों पर नजर बनाए रखना आवश्यक होगा।
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