जहां एक ओर डिजिटल अरेस्ट के कारण लोगों में दहशत बढ़ रही है वहीं दूसरी ओर इन दिनों समाचार पत्रों में नकारात्मक खबरें पढ़ने को मिल रही है। ऐसे समाचार पढ़ने के बाद हर व्यक्ति की चिंता इस ओर है कि आज समाज,परिवार में निरंतर ऐसी घटनाओं की वृद्धि क्यों हो रही है?
दरअसल आजकल समाचार पत्रों में यही सब पढ़ने को मिलता है कि- पिता ने पुत्र का रस्सी से गला घोट दिया, मित्र ने मित्र की पत्नी से संबंध होने पर मित्र को ही मौत के घाट उतार दिया। जीजा ने साली से प्रेम संबंधों के चलते पत्नी की हत्या कर दी। माता-पिता या शिक्षक द्वारा मोबाइल से दूर रहने की हिदायत देने पर आत्महत्या की घटनाएं तो जैसे आम हो गई है। इसी क्रम में शुक्रवार को प्रकाशित समाचार ने तो लोगों का दिल दहला दिया है, समाचार के अनुसार प्राचार्य द्वारा छात्र को देर से स्कूल आने पर प्राचार्य द्वारा डांट लगाने की मामूली घटना इतना बड़ा रूप ले लेगी यह कोई सोच भी नहीं सकता है। छतरपुर में प्राचार्य द्वारा छात्र को डांट लगाने पर छात्र द्वारा प्राचार्य की गोली मारकर हत्या कर दी गई। बताया जा रहा है कि छात्र को शिक्षक की सीख इतनी बुरी लगी कि वह कईं दिनों से प्राचार्य को मारने की योजना बना रहा था, जैसे एक आदतन अपराधी करता है। 17 वर्ष के नाबालिग में यह आक्रोश कहां से आया कि उसने इतनी बड़ी घटना को अंजाम दे दिया,यह चिंता में डालने वाली बात है। घटना के बाद भी इन नाबालिगों को कोई डर या पछतावा नहीं होता है। क्या इस सम्बंध में आज हो रही बच्चों की परवरिश पर प्रश्न चिन्ह लगाया जाना उचित होगा या संगति पर या फिर ओटीटी पर परोसी जाने वाली एक्शन फिल्में इन घटनाओं की प्रेरणा बन रही है। जो कुछ भी हो रहा है उसे रोकना अति आवश्यक है। पुलिस प्रशासन को तो घटना के बाद सूचना मिलती है,लेकिन इसके पूर्व इसे रोकने की जिम्मेदारी किसकी हो? बड़ा सवाल यह है। परिवारों में पति-पत्नी के बीच तनाव, तलाक के परिणाम, बच्चों के लालन-पालन में गंभीर प्रभाव डालते हैं, इस बात को भी झूठलाया नहीं जा सकता है। ऐसे में यदि कोई दूसरा व्यक्ति उनके कंधे पर हाथ रखता है तो वही उनका सच्चा दोस्त, हमदर्द बन जाता है। किशोरियों के साथ हो रही दुष्कर्म की घटनाएं भी इसी ओर इंगित करती है। किशोर अवस्था और बाल अवस्था में बहुत ज्यादा अंतर नहीं होता है जो भविष्य के परिणाम से अनभिज्ञा होती है। वे तो बस आजाद पंछी की तरह कहीं उड़ जाना चाहते हैं। समझ आती है तब तक बहुत देर हो जाती है। इसी देर को परिवारजन, अभिभावकों को समझना होगा। बच्चों के समक्ष माता-पिता को उनके बीच हो रहे वाद- विवाद से बचना चाहिए। स्कूल में बच्चा कहां जा रहा है, किससे मिलता है, दोस्त कौन है जो स्कूल के बाहर मिलते हैं। यह जानकारी होना अति आवश्यक है। अच्छा हो बच्चों को पढ़ाई के बाद खेल या फिर अच्छे कार्यों में व्यस्त रखें। व्यवहार में असामान्यता होने पर मनोचिकित्सक की सलाह लेना उचित होगा। समय रहते सावधानी जरूरी होगी। अन्यथा जब चिड़िया चुग गई खेत फिर पछतावे का होत है।
मो.: 9425004536
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