यतीन्द्र अत्रे
ऐसा माना जा रहा है की 1950 के भारत में और वर्तमान भारत में जमीन आसमान का है। प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस पर तिरंगा फहराते हुए हम गर्व की अनुभूति करते हैं और प्रतिवर्ष देश के विकास में हो रहे परिवर्तनों को भी महसूस करते हैं। इसी के चलते वर्ष 2047 में हम विकसित भारत का सपना भी देख रहे हैं। इस सपने को पूरा करने हेतु प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में हम सभी प्रतिबद्ध हैं, उस अनुसार केंद्र सरकार की योजनाएं भी क्रियान्वित हो रही हैं। विदेशी कंपनियों को आमंत्रण देना, देश की धरती पर उनका उत्पादन होना भी इस अभियान एक हिस्सा माना जा रहा है। लेकिन क्या इसके पूर्व भी यह सपना पूरा हो सकता है ? संभव है सुनने वाले को प्रथम दृष्टव्या में यह सिर्फ छलावा मात्र लगे, लेकिन विश्व में हो रही उथल-पुथल तो यही संकेत दे रही है। हम विश्व की तीसरी महाशक्ति बनने की और अग्रसर हैं, कहा यह भी जा रहा है कि यह समय भारतीयों का है,और भारतीयों को अवसरों को भुनाने में सिद्ध कहा जाता है।
दरअसल डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका में 47 वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद उनकी दमनकारी नीतियों की घोषणा से कई ऐसे देशों में उथल-पुथल मची हुई है,जो इन नीतियों से प्रभावित होंगे। हालांकि ट्रंप के शपथ लेते ही जो सकारात्मक परिवर्तन दिखाई दे रहे हैं,जिसके कारण उनके 20 हजार समर्थक जोश से भरे हुए हैं उनमें से प्रमुख इजरायल-हमास युद्ध पर लगभग विराम लग चुका है और जो इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा में है अमेरिका का स्टाॅक मार्केट। बताया जा रहा है कि 39 वर्षों में पहली बार स्टाॅक मार्केट का बिजनेस आप्टिमाइज्म रिकाॅर्ड 41 पाॅइंट पर जा पहुंचा है। लेकिन यह सकारात्मक परिवर्तन स्थाई होंगे यह कहना जल्दबाजी होगी। अब ट्रंप की घोषणाओं की बात करते है- ऐसा क्या परिवर्तन होना है जो कई देशों को प्रभावित करेगा। ट्रंप के शपथ लेने के बाद उनके द्वारा लगभग 200 फाइलों पर हस्ताक्षर किया जाना भी वहां की स्थिति में परिवर्तन के संकेत दे रही हैं। प्रथम पंक्ति की घोषणाओं की बात करें जो अधिक चिंतित करती हैं वह प्रवासी भारतीयों को बाहर का रास्ता दिखाना,सीमा बंदी पर कार्रवाई और सबसे महत्वपूर्ण अमेरिका में बर्थ राइट सिटीजनशिप का समाप्त होना है। ट्रंप की घोषणा के बाद सिर्फ भारत की बात करें तो लगभग 10 लाख प्रवासी भारतीयों के प्रभावित होने की बात सामने आ रही है। हालांकि इन घोषणाओं को कितना समर्थन मिलेगा, कानून क्या कहता, वहां की अदालतें इसकी अनुमति देंगी या नहीं यह तो भविष्य ही बताएगा, लेकिन यह तो तय माना जा रहा है कि इससे प्रभावित देश अमेरिका से किनारा करने वाले हैं। यही नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन को दी जा रही सहायता से हाथ खींचने, वैश्विक पर्यावरण प्रयासों से बाहर होना, अमेरिका से व्यवसाय करने वाले अनेक देशों को टैक्स बढ़ाने का संदेश देना यह सब उन देशों के लिए खतरनाक संकेत हैं जो प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष अमेरिका से जुड़े हैं। अब बात करते हैं कि इन प्रभावों से निर्मित होने वाली इस स्थिति के इतर क्या संभावनाएं बनती हैं- हो सकता है भारत और चीन करीब आए, रूस से दोस्ती और गाढ़ी हो जाए। इन देशों के साथ और भी कई देश विश्व स्वास्थ्य संगठन को दी जा रही सहायता को जारी रखना चाहें, संभव हो वैश्विक पर्यावरण के प्रयासों में भारत इन सब का नेतृत्व करें। यदि ये संभव होगा तो यह भी संभव हो कि, वर्ष 47 का लक्ष्य भारत 10 वर्ष पूर्व ही पूर्ण कर ले। डगर कठिन होगी किंतु इस दिशा में यदि भारत विश्व स्वास्थ संगठन को सहायता देने वाले राष्ट्रों के साथ मिलकर अमेरिका को आभास करा दे कि उसके बिना भी दुनिया को अस्तित्व में रखा जा सकता है। तो यह राह आसान हो सकती है। भारत विश्व की तीसरी इकोनामी शक्ति बनें। विकास की दिशा में भारत की यह नई तस्वीर प्रत्येक देशवासी देखना चाहेगा।
मो.: 9425004536
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