सृष्टि के आरंभिक काल की कथा है सती

सात दिवसीय श्रीरामलीला उत्सव में मंचित किए जा रहे प्रसंग

भोपाल। मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा रवीन्द्र भवन के मुक्ताकाश मंच पर 18 से 24 अक्टूबर 2024 तक श्रीरामकथा के विविध प्रसंगों की लीला प्रस्तुतियों एकाग्र श्रीरामलीला उत्सव का आयोजन किया गया है। सात दिवसीय श्रीरामलीला उत्सव में लीला मण्डल- अवध आदर्श रामलीला मण्डल, अयोध्या (उ.प्र.) के कलाकारों द्वारा प्रतिदिन सायं 6.30 बजे से रामकथा के विभिन्न प्रसंगो की प्रस्तुतियां दी जा रही है। उत्सव में “श्रीरामराजा सरकार” श्रीराम के छत्तीस गुणों का चित्र कथन “वनवासी श्रीराम” वनगमन पथ के महत्त्वपूर्ण स्थलों का चित्रांकन एवं “चरित” रामलीला में प्रयुक्त मुखौटे और मुकुट की प्रदर्शनी का भी संयोजन किया गया है। उत्सव का प्रसारण संस्कृति विभाग के यूट्यूब चैनल पर लाइव प्रसारित किया जा रहा है। शुरूआत कलाकारों के स्वागत से की गई।  इसके बाद श्रीराम कथा के प्रसंगों का मंचन किया गया।

उत्सव के तीसरे दिन 20 अक्टूबर, 2024 को श्री सुमन साहा के निर्देशन में सती लीला नृत्य-नाटय और धनुष भंग एवं अयोध्या लीला मंडली के कलाकारों द्वारा लक्ष्मण-परशुराम संवाद, श्रीराम विवाह प्रसंग को मंचित किया। उत्सव में “सती” लीला नाट्य की प्रस्तुति दी गई। ‘सती लीला’ नृत्य-नाट्य की कथावस्तु सृष्टि के आरंभिक काल की कथा है, जिसमें आदिदेव ब्रह्मा प्रजा विस्तार के लिए कई स्तरों पर प्रयासरत होते हैं। उनके मन में विचार आता है कि जगत के कल्याण के लिए शिव और शक्ति का मिलन परम आवश्यक है। वह अपने अनेक मानस पुत्रों में से एक दक्षराज को प्रेरित करते हैं कि वह सहस्त्रों पुत्रों के स्थान पर एक शक्तिशाली पुत्री पाने के लिए तपस्या करें। पिता की आज्ञा मानकर दक्षराज देवी जगदंबा को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करने लगते हैं। इधर ब्रह्मा स्वयं भी देवी जगदंबा का आह्वान करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि वह दक्षराज की कन्या के रूप में जन्म लेकर शिव से विवाह करें। सती का जन्म होता है। विवाह की आयु आने पर ब्रह्मा और विष्णु शिव से प्रार्थना करते हैं कि उनके लिए दक्षपुत्री सती योग्यतम कन्या है और वह उनसे विवाह करें। शिव अपने प्रिय ब्रह्मा और विष्णु के निवेदन को अस्वीकार नहीं कर पाते और विवाह की सहमति दे देते हैं। राग और प्रेम से कोसों दूर रहने वाले शिव जैसे ही सती को देखते हैं मोहित हो जाते हैं। वह गंधर्व विवाह का प्रस्ताव रखते हैं परंतु सती अस्वीकार कर देती हैं। वह कहती हैं कि पहले उनके पिता से अनुमति लीजिए तब विधिपूर्वक विवाह कीजिए । शिव मान जाते हैं और ऐसा ही करते हैं । बारात आती है विवाह संपन्न होता है उसके बाद शिव सती को अपने निवास कैलाश पर लाते हैं । कैलाश पहुंचकर सती देखती हैं कि उनकी ससुराल में न घर है न कोई गृहस्थी का सामान । यहां तक कि तुरंत भोजन के लिए भी कुछ नहीं है । तब शिव सती को भोजन कराने के लिए मुनि अगस्त्य के यहां ले जाते हैं । अगस्त्य के यहां दोनों प्रभु श्रीराम की कथा भी सुनते हैं । श्रीराम का गुणगान करते हुए जब शिव सती के साथ लौट रहे होते हैं कि तभी सीता को ढूंढ़ते हुए राम और लक्ष्मण दिखते हैं । राम को देखकर शिव उन्हें प्रणाम करते हैं । यह देखकर सती विस्मय में पड़ जाती हैं । उन्हें राम की अलौकिकता पर संदेह होता है। सती के संदेह पर शिव उन्हें परीक्षा लेने की अनुमति देते हैं । सती राम की परीक्षा लेती हैं और उनका देवत्व देखकर पश्चाताप करती हैं । तब तक शिव लंबी समाधि पर बैठ चुके होते हैं। सती उनकी समाधि के टूटने की प्रतीक्षा में स्वयं भी समाधिस्थ हो जाती हैं।

वहीं अगले क्रम में अयोध्या लीला मंडली के कलाकारों द्वारा लक्ष्मण-परशुराम संवाद, श्रीराम विवाह प्रसंग की प्रस्तुति दी गई। लक्ष्मण-परशुराम के संवाद और श्रीराम-सीता विवाह की कहानी रामचरितमानस के बालकांड से ली गई है। इस कहानी में, सीता स्वयंवर के दौरान शिव धनुष टूटने के बाद परशुराम क्रोधित होकर आते हैं और लक्ष्मण से संवाद करते हैं। इसके बाद श्रीराम के विनय और विश्वामित्र के समझाने पर परशुराम का गुस्सा शांत होता है और श्रीराम-सीता का विवाह हो जाता है।

उत्सव में 21 अक्टूबर, 2024 को सूर्पणखा नासिका भेदन एवं सीताहरण, जटायु-शबरी उद्धार एवं 22 अक्टूबर, 2024 को श्री हिमांशु द्विवेदी के निर्देशन में निषादराज गुह्य लीला-नाट्य और बालि वध एवं लंका दहन की प्रस्तुति होगी। वहीं 23 अक्टूबर 2024 को लक्ष्मण शक्ति एवं कुंभकरण-मेघनाद-रावण वध और समापन दिवस 24 अक्टूबर 2024 सुश्री गीतांजलि गिरवाल के निर्देशन में भक्तिमती शबरी लीला- नाट्य और भरत मिलाप एवं श्रीराम राज्याभिषेक प्रसंगों का मंचन किया जायेगा। समारोह में आप सभी सादर आमंत्रित हैं, प्रवेश निःशुल्क है।

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