नकारात्मकता में सृजनता को तलाशता है नाटक ‘उत्तर कामायनी’ का नायक

मायाराम सुरजन भवन के मंच पर मुकेश पाचोड़े के निर्देशन में एकल अभिनय से विवेक लिटोरिया ने सजाया नाटक

यतीन्द्र अत्रे

भोपाल। शनिवार को मायाराम सुरजन भवन में एकजुट थिएटर एंड वेलफेयर समिति द्वारा आयोजित रंगकर्मी मुकेश पाचोड़े के निर्देशन में दिलीप बैरागी लिखित नाटक ‘उत्तर कामायनी’ का मंचन हुआ। नाटक की कहानी काल्पनिक रूप से तीसरे विश्व युद्ध के बाद की विभीषिका को दर्शाती है। नायक के स्वप्न में तीसरे विश्व युद्ध होने के बाद का दृश्य उभरता है, जहां सब कुछ समाप्त हो चुका है, कहीं पशु है ना पक्षी। वृक्ष भी ठूंठ बन चुके हैं। दिखाई दे रहे हैं तो बस क्षत-विक्षत शव। एकमात्र जीवित बचा कहानी का नायक देश दुनिया, युद्ध के परिणाम,उत्पन्न विभीषिका… सब पर बात करना चाहता है, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं होता है।चारों ओर दिखाई दे रही नकारात्मकता के बावजूद वह शून्य से नई दुनिया बसाना चाहता है…कहानी का यही पहलू नाटक को ऊंचाई प्रदान करता है। कहानी के माध्यम से निर्देशक ने परमाणु संपन्न देशों को परमाणु बम का प्रयोग कभी न करने हेतु संदेश देने का प्रयास किया गया है। मंच पर अपने सहज अभिनय से दर्शकों को अचंभित करने वाले मुकेश निदेशकीय की जोर आजमाइश में कहीं पीछे नहीं दिखाई दिए। नाटक में एकल अभिनय के माध्यम से विवेक लिटोरिया न्याय संगत लगे। एक अच्छे अभिनेता को हमेशा एक अच्छी भूमिका की तलाश होती है,सो विवेक का रंग-भविष्य भी उज्जवल दिखाई देता है।सेट डिजाइनिंग और प्रॉप्स युद्ध विभीषिका को दर्शा रहे थे वहीं निलेश रंजन का संगीत एवं मिलन सिंह रावत का प्रकाश संचालन दृश्यों को कहानी से जोड़ते दिखाई देते हैं।

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