भोपाल। देवी अहिल्या बाई की 300वीं जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में प्रदेश में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। इसी उपलक्ष्य पर मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग एवं विश्वमांगल्य सभा, नागपुर के संयुक्त तत्वाधान में प्रदेश के विभिन्न जिलों में राष्ट्रसमर्था: देवी अहिल्या की पुण्यगाथा नाट्य प्रस्तुति का संयोजन किया जा रहा है। इसी क्रम में 16 फरवरी, 2025 को हंसध्वनि सभागार, रवीन्द्र भवन में इस नाट्य की 12वीं प्रस्तुति संयोजित की गई। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलनसे हुआ। इस दौरान मंच पर राष्ट्रीय सह-संगठन मंत्री, विश्वमांगल्य सभा सुश्री पूजा देशमुख, माननीय सांसद, भोपाल श्री आलोक शर्मा, माननीय महापौर, नगर निगम भोपाल, सुश्री मालती राय, माननीय विधायक, सीधी सुश्री रीति पाठक, माननीय अध्यक्ष, अहिल्या उत्सव समिति, भोपाल, श्री दीपक वर्मा, माननीय अध्यक्ष, मध्यप्रदेश, विश्वमांगल्य सभा, सुश्री सूरज डामोर, क्षेत्रीय संगठन मंत्री, विश्वमांगल्य सभा सुश्री पूजा पाठक, माननीय अध्यक्ष, भोपाल, विश्वमांगल्य सभा, सुश्री प्रीती उपाध्याय एवं अन्य जनप्रतिनिधि, समाजसेवी उपस्थित रहे। कार्यक्रम में माननीय सांसद, भोपाल श्री आलोक शर्मा ने कहा कि भोपाल का इतिहास हजारों साल पुराना गौरवशाली इतिहास है। कमला पार्क में रानी कमलापति का महल साथ ही यहां राजा भोज का शासन रहा है। भोपाल की लालघाटी का इतिहास भी भोपाल के रहवासी जानते हैं। कार्यक्रम की मुख्य वक्ता सुश्री पूजा देशमुख ने देवी अहिल्याबाई के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज के मातृत्व को सक्षम बनाना होगा।



कथासार
नाटक की कहानी डॉ वृशाली जोशी, नागपुर द्वारा लिखित एवं श्री सुबोध सुर्जीकर द्वारा निर्देशित है। जिसमें में 40 कलाकारों ने अपनी सहभागिता की है। इस नाटक का संदर्भ श्री गणेश मतकर, सुश्री सुमित्रा ताई महाजन, विजया जहागीरदार एवं जॉन के की पुस्तक ‘ए हिस्ट्री ऑफ इंडिया’ से लिया गया है। नाट्य की कहानी सुश्री मांडवी अरोनकर के समूह द्वारा गणेशा वंदना से प्रारंभ होती हैंl 8 वर्ष की देवी अहिल्या रेत के शिवलिंग की पूजा अर्चना करती हैं। वे बाल्यकाल से ही सभी लोगों को धर्म से अवगत कराती हैं। महाराष्ट्र के चौंडी गांव में देवी अहिल्याबाई का जन्म हुआ। उनके पिता मनकोजी राव शिंदे और उनके पति श्री खंडेराव होलकर थे। देवी अहिल्याबाई के विवाह के बाद उन्हें शास्त्र, न्याय, प्रशासन, अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा दी जाती है, लेकिन देवी अहिल्याबाई अस्त्र-शस्त्र चलाने के लिए मना करती हैं, लेकिन गुरु के वचन और सीख के चलते वे यह विद्या हासिल करती हैं। कुछ समय बाद मल्हार राव और खंडेराम की मृत्यु के बाद देवी अहिल्याबाई अपनी राजधानी बदलने का निर्णय लेती हैं और महेश्वर को नई राजधानी चुनाव करती हैं। देश भर में शिव मंदिरों और घाटों का जीर्णोद्धार करवाती हैं। अंत समय में महेश्वर में ही वे अपने प्राणों को समर्पित कर देह त्याग देती हैं। संपूर्ण नाट्य के माध्यम से देवी अहिल्या की राष्ट्रसमर्था, पुण्यश्लोका, लोकमाता, मालवा की महारानी, कुशल प्रशासक, वीरांगना, राष्ट्र-धर्म रक्षक, त्याग की मूर्ति का परिचय दिया गया।
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