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भारत की ज्ञान परंपरा को लोक परंपरा के माध्‍यम से ही समझा जा सकता है

भोपाल। जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, जनजातीय संग्रहालय,भोपाल की त्रैमासिक ‘लिखन्‍दरा’ परिसंवाद  के पहले दिन 04 मार्च को भारत में वाद्य और देह अलंकरण विषयक परिसंवाद का आयोजन शासकीय एमएलबी कॉलेज के सहयोग से सम्‍पन्‍न हुआ। संवाद के दौरान अकादमी निदेशक डॉ.धर्मेन्‍द्र पारे ने कहा कि ‘भारत की ज्ञान परंपरा को लोक परंपरा के माध्‍यम से ही समझा जा सकता है। भारत की सनातन परंपराओं का समकाल जीवंत लोक परंपरा ही है।’ परिसंवाद के मुख्‍य वक्‍ता क्षेत्रीय शिक्षा संस्‍थान के प्रो़.सुरेश मकवाना ने भारत के दुर्लभ और पारंपरिक वाद्यों की प्रस्‍तुतिपरक जानकारी  देते हुए कहा कि लोकवाद्यों को वतर्मान शिक्षा से जोड़ना आवश्‍यक है तभी यह पारंपरिक विरासत संरक्षित हो सकेगी। छत्तीसगढ़ से आमंत्रित सुश्री स्वाति आनंद और श्री गोपीकृष्‍ण सोनी ने मध्‍यप्रदेश की विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा के देह अंलकरण गोदना को सृष्टि, शक्ति, श्रृंगार और बैगा महिलाओं के प्रेम की अभिव्यक्ति बताया। उन्‍होंने कहा कि गोदना कला की स्‍याही रमतिला से बने काजल से तैयार होती है। बैगा इस अमिट स्‍याही को आत्‍मा का श्रृंगार कहते हैं। शरीर के हर अंगों में गोदना का आकल्पन वैज्ञानिक दृष्टि से एंटिबायोटिक का कार्य भी करता है। छिंदवाड़ा महाविद्यालय की प्रोफेसर टीकमणि पटवारी ने ‘ वन और भारिया’ जनजाति के अंतर्संबंधों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वर्तमान की बड़ी समस्या ग्लोबल वार्मिंग को रोकने में भारिया जीवन शैली बहुत हद तक उपयोगी हैं। कार्यक्रम का संचालन प्रो.सुधीर कुमार शर्मा और आशुतोष मालवीय ने किया। परिसंवाद में डॉ विजयलक्ष्‍मी राय और डॉ़.संगीता सक्‍सेना ने अतिथियों का स्‍वागत किया।

आज 5 मार्च को परिसंवाद का समापन

समापन दिवस पर ‘लोक गायक : वसुदेवा जीवन और संस्‍कृति’  विषय पर परिसंवाद के साथ होगा। इसमें बुंदेलखंड के सुप्रसिद्ध गायक श्री संतोष वसुदेवा और कविता शर्मा के साथ संवाद और प्रस्‍तुति होगी।

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