दो दिवसीय इंद्राणी उत्सव के दूसरे दिन हुई लोक गायन एवं नृत्यों की प्रस्तुतियां

भोपाल। मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग एवं खेल युवा एवं सांस्कृतिक गतिविधि विभाग, गुजरात सरकार के सहयोग से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर दो दिवसीय महिलाओं की सर्जनात्मकता का उत्सव इन्द्राणी उत्सव का आयोजन जनजातीय संग्रहालय में किया गय। उत्सव में चित्रांकन शिविर, शिल्प मेला विविध माध्यमों के शिल्प का प्रदर्शन और साथ ही देशज व्यंजन का भी संयोजन किया गया है। उत्सव के दूसरे दिन 9 मार्च को कार्यक्रम की शुरुआत जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, निदेशक डॉ धर्मेंद्र पारे, युवा एवं सांस्कृतिक गतिविधि विभाग, गुजरात के युवा एवं सांस्कृतिक अधिकारी श्री हितेश दिहोरा द्वारा कलाकारों के स्वागत से की गई।

उत्सव में दोपहर की गतिविधि में सुश्री स्वाति उखले एवं साथी, उज्जैन द्वारा मालवी गायन, सुश्री पूर्णिमा चतुर्वेदी एवं साथी, भोपाल द्वारा निमाड़ी गायन,श्री जानकी बैण्ड नाट्य लोक संस्था-जबलपुर द्वारा फाग, स्वराज एवं लोक गायन, सुश्री शामला कालबेलिया एवं साथी-राजस्थान द्वारा घूमर/चरी नृत्य, ज्योति तुम्भार एवं साथी-महाराष्ट्र द्वारा लावणी नृत्य, जया सक्सेना एवं साथी-मथुरा द्वारा मयूर नृत्य एवं बृज की होली,सुश्री प्रतिभा रघुवंशी एवं साथी-उज्जैन द्वारा मटकी नृत्य, अंकिता डांडोलिया एवं साथी-छिंदवाड़ा द्वारा भारिया जनजातीय सैताम नृत्य, रोशनी कास्देकर एवं साथी-बैतूल कोरकू जनजातीय चिलोरी नृत्य, पूजा श्रीवास्तव एवं साथी-सागर द्वारा नौरता नृत्य, नर्तन कला केन्द्र / विरानी साइंस, गुजरात समूह द्वारा गरबा नृत्य, तांडव नर्तन अकादमी, गुजरात द्वारा उपशास्त्रीय एवं लोक नृत्य एवं फॉर मोस्ट म्यूजिक अकादमी, गुजरात द्वारा देशभक्ति गायन की प्रस्तुति दी गई।

उत्सव में सुश्री स्वाति उखले एवं साथी-उज्जैन द्वारा मालवी गायन अंतर्गत लोक एवं फाग गीतों की प्रस्तुति दी। उन्होंने तम तो बेगा बेगा आवो हो  गणेश…, होली खेले नटराजा…, बागा में खेला बगीचा में खेला…,चढस हांके के हजारी…, म्हारा भोला सा भरतार…, म्हारा मोहन मुरली वाला…, गीतों की प्रस्तुति दी।

वहीं अगले क्रम में पूर्णिमा चतुर्वेदी एवं साथी -भोपाल द्वारा निमाड़ी गायन किया गया। देवताओ की होली—मची रही रणत भवन म होली खेल गणपति जी महाराज…, परिवार की होली – म्हारी हरी चुनर पs रंग वरस…, पति -पत्नि की होली उडी रह्यो रंग गुलाल बलम मख…, राम की फाग -खेली खेली राम न फाग अवध…, ननद भाभी की होली-टेसू फूल्यो अतिभारा नणद…,  जैसे कई लोक और फाग गीतों की प्रस्तुति दी।

श्री जानकी बैण्ड नाट्य लोक संस्था-जबलपुर द्वारा फाग, स्वराज एवं लोक गायन की प्रस्तुति दी गई।  भजो रे मन भोरे रघुवर खो- (बम्बुलिया)…,झांसी की रानी (कविता)…, दुर्गावती बिन जग अँधियारा – (सुआ )…, सुभान बाई बो पानी गिरे है बनी ठनी (नाचा)…, हाय जाबो धान कूट लाया (मूसल)…, घुमा के मारूं मोरे छैला तिरछी नजरिया (ददरिया)…, दुर्गावती राज मा मजा उड़गे…, जैसे कई लोक, स्वराज एवं फाग गीतों की प्रस्तुति दी गई।

उत्सव में शामला कालबेलिया एवं साथी-राजस्थान द्वारा घूमर/ चरी नृत्य प्रस्तुति दी गई। चरी नृत्य, राजस्थान का एक लोक नृत्य है. यह नृत्य हाड़ौती क्षेत्र के बूंदी, कोटा, और बारां ज़िलों में किया जाता है। यह नृत्य महिलाओं द्वारा किया जाता है। इस नृत्य में तेज़ रफ़्तार से चक्कर काटे जाते हैं। युवतियां घाघरा पहन विवाह और त्योहारों पर यह नृत्य करती हैं।

घूमर राजस्थान का एक पारंपरिक लोक नृत्य है। यह नृत्य मूल रूप से मारवाड़ क्षेत्र से आया है। घूमर नृत्य मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है। नृत्य घाघरा वाली पोशाक पहनकर किया जाता है। यह नृत्य मुख्य रूप से महिलाओं के द्वारा विवाह एवं अन्य अनुष्ठान, समारोहों में किया जाता है

अगले क्रम में सुश्री जया सक्सेना और साथी, मथुरा द्वारा बृज की होली और मयूर नृत्य की प्रस्तुति दी। मयूर नृत्य राधा रानी और श्रीकृष्ण, को पर आधारित लोक नृत्य  है। इसमें कलाकार मोर रूप धारण करके नृत्य करते हैं, जिनमें राधा रानी- श्रीकृष्णऔर गोपियों का रूप दिखाई देता है। श्रृंगार और प्रेम रस में डूबा हुआ यह नृत्यर अपनी चमक और मनमोहिनी छटा के लिए जाना जाता है। इसमें कलाकार नर्तक मोर के पंख से बने वस्त्र पहनते हैं। राधा रानी भूखी प्यासी प्रतिदिन मोर नृत्य देखने मोर कुटी जाती थीं। एक दिन भगवान श्रीकृष्ण ने सारे मोर अदृश्य कर दिये, तो राधा राधी बहुत दुःखी हुईं। राधा रानी को दुःखी देख कर भगवान श्रीकृष्ण से रहा नहीं गया और उन्होंने मयूर का रूप लेकर जिन्हें देखकर राधा रानी प्रसन्न हो जाती हैं।

वहीं सुश्री प्रतिभा रघुवंशी एवं साथी, उज्जैन द्वारा मटकी नृत्य की प्रस्तुति दी गई। मालवा में मटकी नाच का अपना अलग परम्परागत स्वरूप है। विभिन्न अवसरों पर मालवा के गाँव की महिलाएँ मटकी नाच करती है। ढोल या ढोलक को एक खास लय जो मटकी के नाम से जानी जाती है, उसकी थाप पर महिलाएँ नृत्य करती है। प्रारम्भ में एक ही महिला नाचती है, इसे झेला कहते हैं। महिलाएँ अपनी परम्परागत मालवी वेशभूष में चेहरे पर घूँघट डाले नृत्य करती हैं। नाचने वाली पहले गीत की कड़ी उठाती है, फिर आसपास की महिलाएँ समूह में कड़ी को दोहराती है। नृत्य में हाथ और पैरों मेंसंचालन दर्शनीय होता है। नृत्य के केद्र में ढोल होता है। ढोल पर मटकी नृत्य की मुख्य ताल है। ढोल किमची और डण्डे से बजाया जाता जाता है। मटकी नाच को कहीं-कहीं आड़ा-खड़ा और रजवाड़ी नाच भी कहते हैं।

सुश्री अंकिता एवं साथी, छिंदवाड़ा द्वारा भारिया जनजातीय नृत्य सैताम की प्रस्तुति दी। मध्यप्रदेश के भारिया जनजातीय द्वारा किये जाने वाले सैताम नृत्य में महिलाएं रंग बिरंगे परिधान पहनकर नृत्य करती हैं। संगीत की धुन और ताल के साथ जुगलबंदी करते हैं। बांसुरी की मधुर धुन, नगाड़ा की थाप पर मंत्रमुग्ध कर देने वाली नृत्य शैली है। यह नृत्य फसल कटाई और विभिन्न पर्वों के शुभ अवसर पर किया जाता है। ढोल, नगाड़ा, बांसुरी का अद्भुत सामंजस्य किया जाता है।

सुश्री ज्योति तुम्भार एवं साथी-महाराष्ट्र द्वारा महाराष्ट्र का लावणी नृत्य प्रस्तुत किया गया। लावणी भारत में प्रचलित संगीत की एक शैली है। लावणी पारंपरिक गीत और नृत्य का एक संयोजन है, जो विशेष रूप से ढोलकी की थाप पर किया जाता है। लावणी लय के लिए प्रसिद्ध है। लावणी ने मराठी लोक रंगमंच के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। महिला कलाकारों द्वारा लुगाड़े साड़ी का प्रयोग कर  यह नृत्य किया जाता है। साथ ही इसमें गाने तेज गति से गाए जाते हैं।

सुश्री रोशनी कास्देकर एवं साथी-बैतूल कोरकू जनजातीय चिलोरी नृत्य की प्रस्तुति दी गई। कोरकू जनजातीय की किशोरावस्था की युवतियां संसार को देखने और समझने की प्रथम अनुभूति के लिए यह नृत्य संयोजित किया जाता है। बच्चियां पारंपरिक वेशभूषा में शरद ऋतु के दौरान यह नृत्य किया जाता है। गोल घूमते हुए गीतों के माध्यम से यह नृत्य किया जाता है।

अगले क्रम में पूजा श्रीवास्तव एवं साथी, सागर द्वारा नौरता नृत्य की प्रस्तुति दी। बुन्देलखण्ड अंचल में नवरात्रि के अवसर पर कन्याएं इसका आयोजन करती हैं। यह पूरे नौ दिन तक चलता है। घर के बाहर एक अलग स्थान पर नौरता बनाया जाता है। गाँव में रंगों की जगह गेरू, सेम के पत्तों का रंग, हल्दी तथा छुई का प्रयोग मुख्य रंग इतने ही होते हैं। नौरता में सुअटा, चंदा सूरज तथा नीचे रंगीन लाइनें बनायी जाती हैं। कई घरों में नौरता जहाँ बनता है। वहाँ पर आकर्षक बाउण्ड्री बनायी जाती है। नौरता पर नौ दिन अलग-अलग ढंग से चौक बनाये जाते हैं।

उत्सव में नर्तन कला केन्द्र / विरानी साइंस, गुजरात समूह द्वारा गरबा नृत्य की प्रस्तुति दी गई। नवरात्रि के समय जगह-जगह गरबा नृत्य किया जाता है। महिलाएं और पुरुष पारंपरिक पोशाक पहनकर नृत्य करते हैं। इस नृत्य के माध्यम से देवी की प्रार्थना की जाती है एवं नौ रात्रि के समय बहुत ही उल्लास और उमंग के साथ युवक एवं युवतियां नृत्य करते हैं। वहीं तांडव नर्तन अकादमी, गुजरात द्वारा लोक नृत्य के माध्यम से देवी माता की स्तुति ओर आराधन की गई।

समारोह के अवसर पर आयोजित चित्र शिविर में जनजातीय, लोक चित्र परंपरा की महिला चित्रकार के द्वारा चित्रांकन एवं महिला शिल्पी द्वारा शिल्पों का प्रदर्शन एवं विक्रय किया गया। इस अवसर पर संग्रहालय परिसर में देशज व्यंजन अंतर्गत आंचलिक स्वाद भी परोसा गया।

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