भोपाल। योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि 14 मार्च दिन शुक्रवार को प्रातः 6 बजे से योग साधको द्वारा सभी के जीवन में रंगों का त्यौहार होली पर्व मंगलमय हो सभी स्वस्थ रहें सभी प्रसन्न रहें एवं सबके जीवन में उजाला हो इसके लिये सामूहिक योग साधना, पुष्प एवं ग़ुलाल की वर्षा करके मनाया गया । भारतीय संस्कृति के सभी पर्व योग की शिक्षा के साथ अनुशासन , स्वच्छता, आत्मीयता, संकल्पों को गति, दिनचर्या में परिवर्तन एवं शुभ भाव में रहने का संदेश देते है।
इस अवसर पर सभी सम्मानीय गुरुजन, योग साधक, प्रकृति प्रेमी, समाज सेवी, धर्म प्रेमी भाई बहन बच्चे उपस्थित रहें। प्रमुख रूप से वरिष्ठ कर्नल डी सी गोयल, संजय गुप्ता, अश्विनी व्योहार, विट्ठल सुशीवीने, ऋतूज जैन, सुनील वर्मा, प्रमोद चौरसिया, सुदीपा रॉय, सारंगा नगरारे, सुनीता जोशी , आशा गजभिये, संगीता साहू उषा सोनी, लता बंजारी उपस्थित रहें ।
योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि होली भारत का एक विशिष्ट सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक त्यौहार है। अध्यात्म का अर्थ है मनुष्य का ईश्वर से संबंधित होना या स्वयं का स्वयं के साथ संबंधित होना है। इसलिए होली मानव का परमात्मा से एवं स्वयं से स्वयं के साक्षात्कार का पर्व है। होली रंगों का त्यौहार है। रंग सिर्फ प्रकृति और चित्रों में ही नहीं हमारी आंतरिक ऊर्जा में भी छिपे होते हैं, जिसे हम आभामंडल कहते हैं । एक तरह से यही आभामंडल विभिन्न रंगों का समन्वय है, संगठन है। हमारे जीवन पर रंगों का गहरा प्रभाव होता है, हमारा चिन्तन भी रंगों के सहयोग से ही होता है। हमारी गति भी रंगों के सहयोग से ही होती है। हमारा आभामंडल, जो सर्वाधिक शक्तिशाली होता है, वह भी रंगों की ही अनुकृति है। आज वैज्ञानिक दृष्टि इतनी विकसित हो गई कि अब पहचान त्वचा से नहीं, आभामंडल से होती है। होली का अवसर अध्यात्म के लोगों के लिये ज्यादा उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसलिये अध्यात्म एवं योग केे विशेषज्ञ विभिन्न रंगों के ध्यान एवं साधना के प्रयोगों से आभामंडल को सशक्त बनाते हैं। इस तरह होली कोरा आमोद-प्रमोद का ही नहीं, अध्यात्म का भी अनूठा पर्व है। होली का त्यौहार एवं उससेे जुड़ी बसंत ऋतु दोनों ही पुरुषार्थ के प्रतीक हैं।
होली पर रंगों की गहन साधना हमारी संवदेनाओं को भी उजली करती है। क्योंकि असल में होली बुराइयों के विरुद्ध उठा एक प्रयत्न है, इसी से जिंदगी जीने का नया अंदाज मिलता है, औरों के दुख-दर्द को बाँटा जाता है, बिखरती मानवीय संवेदनाओं को जोड़ा जाता है।
होली के अवसर पर आध्यात्मिक रंगों से होली खेलने की ध्यान की प्रक्रिया निश्चित ही सुखद एवं एक अलौकिक अनुभव है। रंगों का लोकजीवन में ही नहीं बल्कि शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत महत्व है। आओ सब मिलकर होली के इस आध्यात्मिक स्वरूप को समझें और इस पर्व के साथ जुड़ रही विसंगतियों को उखाड़ फेकें।
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