हेरी सखी मंगल गाओ री…  

संभावना गतिविधि में नृत्य एवं फाग गायन की प्रस्तुति  

भोपाल। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में नृत्य,गायन एवं वादन पर केंद्रित गतिविधि “संभावना” का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें 16 मार्च, 2025 को श्री राहुल धुर्वे एवं साथी, सिवनी द्वारा गोण्ड जनजातीय गेड़ी-सैला नृत्य, श्री दयाराम रठुरिया एवं साथी, डिण्डोरी द्वारा बैगा जनजातीय फाग नृत्य एवं श्री विनोद मिश्रा एवं साथी, मध्यप्रदेश द्वारा पारंपरिक फाग गायन,  सुश्री अनामिका त्रिपाठी, महाराष्ट्र द्वारा भोजपुरी गायन और श्री जयदीप गढ़वी एवं साथी, गुजरात द्वारा गढ़वी गायन की प्रस्तुति दी गई। गतिविधि की शुरूआत कलाकारों के स्वागत से की गई। कलाकारों का स्वागत निदेशक, जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी डॉ. धर्मेंद्र पारे द्वारा किया गया।   गतिविधि में श्री राहुल धुर्वे एवं साथी, सिवनी द्वारा गोण्ड जनजातीय गेड़ी-सैला नृत्य की प्रस्तुति दी गई। गोण्ड जनजाति में गेड़ी नृत्य जिसे मुरिया जनजाति में डिटोंग पाटा्य कहते हैं। लकड़ी की गेड़ी पर किया जाता है। इसमें केवल नृत्य होता है गीत नहीं गाये जाते। गेड़ी नृत्य अत्यधिक गतिशील नृत्य है। डिटोंग गेड़ी नृत्य कलारूप के नजरिये से घोटुल का प्रमुख नृत्य है। साथ ही पारंपरिक वेशभूषा और वाद्ययंत्र की ताल पर नृत्य किया जाता है।


वहीं श्री दयाराम रठुरिया एवं साथी, डिण्डोरी द्वारा बैगा जनजातीय फाग नृत्य किया। बैगा मध्यप्रदेश के विशेष पिछड़ी जनजाति में आते है। इस जाति का गांव डिण्डौरी, उमरिया, अनुपपुर, शहडोल, सीधी, बालाघाट, मण्डला आदि जिले को छोड़कर कही भी उनका वशीगत गांव नही है। इस जाति के लोग अनेक नृत्य गायन प्रस्तुत करतें है। जिसमें एक फाग नृत्य भी एक विधा है। जो होली के दिन से तेरह दिन तक इस नृत्य को किया जाता है। फाग नृत्य में एक लकड़ी का बना मुखौटा जिसे बैगा बोली में खेखखड़ा कहतें है। इसे हिरण्यकश्यप के रुप में बीच में रखकर तथा एक बांस का मुखौटा जिसे गिज्जी कहतें है। इसे भी होलीका के रुप बीचों बीच रखकर नृत्य किया जाता है। इस नृत्य में पुरुष महिला दोनों भाग लेते है। इस नृत्य में मुख्य वाद्य, मांदर, टिमकी, बांसुरी हैं इस नृत्य को पेश कर रहें है।

अगले क्रम में श्री जयदीप गढ़वी एवं साथी-जूनागढ़ द्वारा गढ़वी गायन की प्रस्तुति दी गई। उन्होंने दोहा छंद…, हेरी सखी मंगल गाओ री…, नगर में जोगी आया…, होली आई रे आई रे होली आई रे…, कृष्ण पद…, जैसे गीतों की प्रस्तुति दी गई। इसके बाद श्री विनोद मिश्रा एवं साथी, सतना द्वारा पारंपरिक फाग गायन की प्रस्तुति दी गई। मारत हैं पिचकारी…, गुइंया आवा…, फागुन मा भोला रंगाने…, नैना लग जाए…, फागुन रे फागुन…, केसर के उड़े फुहारा…, एवं सुश्री अनामिका त्रिपाठी, महाराष्ट्र द्वारा भोजपुरी गायन  में जोगिरा…, फगुनवा में रंग…, नीक लागे .., रंगवा और अबीर खेलत…, सिया चलीं अवध की ओर…, जैसे कई गीतों की प्रस्तुति दी। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में प्रति रविवार दोपहर 02 बजे से आयोजित होने वाली गतिविधि में मध्यप्रदेश के पांच लोकांचलों एवं सात प्रमुख जनजातियों की बहुविध कला परंपराओं की प्रस्तुति के साथ ही देश के अन्य राज्यों के कला रूपों को देखने समझने का अवसर भी जनसामान्य को प्राप्त होगा।

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