‘द पोडियम टीम’ के युवा फ़िल्मकारों ने संजोयी देशज विरासत
विनय उपाध्याय
भोपाल। चैत्र नवरात्रि के पारंपरिक गणगौर पर्व के दौरान मध्यप्रदेश के निमाड़ अंचल में फ़िल्म ‘गणगौर गाथा’ विशेष आकर्षण का केन्द्र बन गई है। विश्वरंग फाउंडेशन द्वारा निर्मित इस फ़िल्म का निर्देशन युवा फ़िल्मकार आदित्य उपाध्याय ने किया। द पोडियम टीम के युवा कलाकारों ने इसका संयोजन किया है। हाल ही एक गरिमामय समारोह में इस अनूठी डाक्यूमेंट्री फ़िल्म के पोस्टर का लोकार्पण ‘विश्वरंग’ के संस्थापक-निदेशक, साहित्य, संस्कृति और शिक्षा जगत के अग्रणी हस्ताक्षर संतोष चौबे ने किया। गणगौर पर्व के दौरान इस फ़िल्म के प्रदर्शनों का सिलसिला खंडवा, महेश्वर, बड़वाह, खरगोन सहित पूर्व और पश्चिम निमाड़ के गाँव-देहातों में हो रहा है।


सांस्कृतिक धरोहर और देशज कलाओं के शोध तथा दस्तावेज़ीकरण की श्रृंखला में ‘गणगौर गाथा’ का निर्माण एक अनूठी पारंपरिक सौग़ात है। इस फ़िल्म की परिकल्पना और शोध आलेख के साथ ही वाचक स्वर संस्कृतिकर्मी-कला समीक्षक विनय उपाध्याय का है। पोडियम टीम ने गत वर्ष गणगौर पर्व के अवसर पर पूर्व और पश्चिम निमाड़ के ग्रामीण इलाकों की सांस्कृतिक यात्रा की और इस पर्व से जुड़े अनुष्ठान तथा अन्य पारंपरिक गतिविधियों का वास्तविक फ़िल्मांकन किया। यह फ़िल्म लगभग 20 मिनिट की है। इस फ़िल्म का वीडियो संपादन निखिल कुमार अरमान आर्य सिन्हा तथा अभिषेक कनौजिया ने किया है। छायांकन अनिरूद्ध चौथमल, आशीर्वाद मंडल और हेमांग कुरील का है। ध्वन्यांकन तनिष्क भूरिया ने किया है जबकि कोरियोग्राफ़ी लोक नर्तक संजय महाजन की है। सीवी रामन विवि खंडवा में आयोजित निमाड़ लोकरंग में ‘गणगौर गाथा’ की पहली स्क्रिनिंग की गई। भारत के विभिन्न राज्यों से आए लोक मर्मज्ञों, साहित्यकार, समाजसेवियों, शिक्षाविदों तथा छात्र-छात्राओं ने इस फ़िल्म का सामूहिक अवलोकन किया। उल्लेखनीय है कि पूर्व और पश्चिम निमाड़ की सरहदों से लेकर हरदा भुआणा के सीमावर्ती गाँव-कस्बों के रहवासी गणगौर में अपनी लोक आस्था और श्रद्धा का अभिषेक करते हैं।
यह फ़िल्म बताती है कि एक सिरे पर आध्यात्म के गहरे रंग, अनुष्ठान की पवित्रता, पूजा-प्रार्थना और निवेदन तो दूसरे सिरे पर लोकरंजन में आकंठ डूबा तन-मन एक आदिम सुख की इच्छा से भरकर गणगौर में थिरकने लगता है। दूसरे सिरे पर रनुबाई यानी निमाड़ की स्त्री को ही अधिष्ठात्री देवी मानकर उसका गुणगान किया जाता है। गीत की कड़ियों और लय की लड़ियों में लहराते संगीत तो यहाँ दूर देश को ब्याही रनुबाई की अपनी सखियों के संग ठिठोली है, तो प्रेम, ममत्व, करूणा, वात्सल्य और वियोग भी है।
यह फ़िल्म लोकपर्व के उन महत्वपूर्ण पक्षों को भी सामने लाती है जहाँ धर्म, संस्कृति, विज्ञान और अध्यात्म मिलकर मनुष्यता का उत्सवी रूपक बन जाते हैं। यह जीवंतता हमें ऐतिहासिक अनुभव की ओर ले जाती है। जीवन, प्रकृति और संस्कृति को हम एक ही डोर में बंधा पाते हैं। गीत, संगीत और नृत्य की रेशमी झालरों से सजा जीवन का रंगमहल यहाँ अलग ही चहक-महक से भरा है।
चैत्र महीने के दसवें दिन से आगामी नौ दिनों तक मध्यप्रदेश के निमाड़ की धरती गणगौर की धन्यता को गाने मचल उठती है। इन गीतों में स्मृतियों की दुनिया खुलती है। स्त्री की सृजन शक्ति, उसकी अभिलाषाएँ, उसके सरोकार, उसकी नियति और दैवीय महिमा के दिव्य स्वरूपों को जीवन्त होता देखा जा सकता है। इन गीतों की गुंजार बिखरती है तो देह अनायास ही थिरक उठती है।
आदित्य उपाध्याय फ़िल्म प्रॉडक्शन में स्नातकोत्तर हैं। उनकी शॉर्ट फ़िल्म ‘लेटर बॉक्स’ का चयन चित्र भारती अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव के लिए हुआ है। उन्होंने महेश्वर और मांडू के पुरातात्विक वैभव, साहित्य तथा कलाओं के अंतरराष्ट्रीय महोत्सव ‘विश्वरंग’ और रबीन्द्रनाथ टैगोर के कृती-व्यक्तित्व पर एकाग्र लघु फ़िल्मों का निर्माण स्वयं के निर्देशन में किया है।
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