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सांस्कृतिक धरोहर के प्रति लोक आस्था जगाती है ‘गणगौर गाथा’

विश्वरंग फाउण्डेशन के लिए युवा सिनेकर्मियों ने फ़िल्मी दस्तावेज़ों में संजोया लोक पर्व

विनय उपाध्याय

भोपाल। आधुनिकता की चकाचौंध में जीवन के असल स्वाद और सरोकारों से दूर होती जा रही ज़िन्दगी को धरोहरों के पास लौटने की ज़रूरत है। देशज संस्कृति और परंपरा की सुनहरी छवियों को संजोती फ़िल्म ‘गणगौर गाथा’ सनातन संस्कृति का एक ऐसा ही मनोहारी रूपक है। यहाँ ज्ञान और कौशल अपनी सहजता में लालित्य तथा श्रृंगार के बेमिसाल दस्तावेज़ बन गये हैं।

इन प्रतिक्रियाओं के बीच शहर के सिने प्रेमियों ने अपने लोकरंगी अनुभव साझा किए। तुलसी नगर स्थित नर्मदा मंदिर सभागार में रविवार की यह शाम विश्वरंग फाउण्डेशन द्वारा निर्मित लघु फ़िल्म ‘गणगौर गाथा’के प्रदर्शन का ख़ासा आकर्षण समेटे थी।

युवा फ़िल्मकार आदित्य उपाध्याय के निर्देशन में तैयार हुई यह डॉक्यूमेंट्री आदिम स्मृतियों को जगाती हमारी उत्सवधर्मी लोक संस्कृति का सुंदर चित्रण करती है। श्री नर्मदा सेवा समाज द्वारा टैगोर लोक कला एवम् संस्कृति केन्द्र तथा द पोडियम टीम के सहयोग से यह विशेष स्क्रिनिंग थी। साहित्यकार-संस्कृतिकर्मी तथा विश्वरंग के संस्थापक संतोष चौबे के मार्गदर्शन में देशज धरोहर के संरक्षण तथा उनके प्रति लोक रूचि का परिवेश रचने के उद्देश्य से ‘गणगौर गाथा’का निर्माण किया गया है। इस फ़िल्म में शोध-आलेख तथा वाचक स्वर कला समीक्षक विनय उपाध्याय का है। इस अवसर पर नर्मदा सेवा समाज के अध्यक्ष सुशील बिल्लोरे, पूर्व अध्यक्ष पी.सी.शर्मा और  महिला सभा अध्यक्ष संगीता पाराशर ने आदित्य उपाध्याय तथा द पोडियम टीम के सभी युवा कलाकारों का प्रतीक चिन्ह भेंट कर अभिनंदन किया। कार्यक्रम का संचालन विशाखा राजुरकर ने किया। स्क्रीनिंग के बाद प्रो.  पद्माकर सराफ, आलोक बिल्लौरे तथा संदीपा पारे ने अपनी प्रतिक्रियाएं दी।

पोडियम टीम ने गत वर्ष गणगौर पर्व के अवसर पर पूर्व और पश्चिम निमाड़ के ग्रामीण इलाकों की सांस्कृतिक यात्रा की और इस पर्व से जुड़े अनुष्ठान तथा अन्य पारंपरिक गतिविधियों का वास्तविक फ़िल्मांकन किया। इस फ़िल्म के निर्देशक आदित्य उपाध्याय माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता संस्थान के फ़िल्म प्रॉडक्शन स्नातकोत्तर हैं। उनकी शॉर्ट फ़िल्म ‘लेटर बॉक्स’का चयन चित्र भारती फ़िल्म महोत्सव के लिए हुआ है। उन्होंने महेश्वर और मांडू के पुरातात्विक वैभव, साहित्य तथा कलाओं के अंतरराष्ट्रीय महोत्सव ‘विश्वरंग’और रबीन्द्रनाथ टैगोर के कृती-व्यक्तित्व पर एकाग्र लघु फ़िल्मों का निर्माण स्वयं के निर्देशन में किया है।

इस फ़िल्म का वीडियो संपादन निखिल कुमार अरमान आर्य सिन्हा तथा अभिषेक कनौजिया ने किया है। छायांकन अनिरूद्ध चौथमल, आशीर्वाद मंडल और हेमांग कुरील का है। ध्वन्यांकन तनिष्क भूरिया ने किया है जबकि कोरियोग्राफ़ी लोक नर्तक संजय महाजन की है।

चैत्र महीने के दसवें दिन से आगामी नौ दिनों तक मध्यप्रदेश के निमाड़ की धरती गणगौर की धन्यता को गाने मचल उठती है। इन गीतों में स्मृतियों की दुनिया खुलती है। स्त्री की सृजन शक्ति, उसकी अभिलाषाएँ, उसके सरोकार, उसकी नियति और दैवीय महिमा के दिव्य स्वरूपों को जीवन्त होता देखा जा सकता है। इन गीतों की गुंजार बिखरती है तो देह अनायास ही थिरक उठती है।

यह फ़िल्म बताती है कि एक सिरे पर आध्यात्म के गहरे रंग, अनुष्ठान की पवित्रता, पूजा-प्रार्थना और निवेदन तो दूसरे सिरे पर लोकरंजन में आकंठ डूबा तन-मन एक आदिम सुख की इच्छा से भरकर गणगौर में थिरकने लगता है। दूसरे सिरे पर रनुबाई यानी निमाड़ की स्त्री को ही अधिष्ठात्री देवी मानकर उसका गुणगान किया जाता है। गीत की कड़ियों और लय की लड़ियों में लहराते संगीत तो यहाँ दूर देश को ब्याही रनुबाई की अपनी सखियों के संग ठिठोली है, तो प्रेम, ममत्व, करूणा, वात्सल्य और वियोग भी है।

यह फ़िल्म लोकपर्व के उन महत्वपूर्ण पक्षों को भी सामने लाती है जहाँ धर्म, संस्कृति, विज्ञान और अध्यात्म मिलकर मनुष्यता का उत्सवी रूपक बन जाते हैं। यह जीवंतता हमें ऐतिहासिक अनुभव की ओर ले जाती है। जीवन, प्रकृति और संस्कृति को हम एक ही डोर में बंधा पाते हैं। गीत, संगीत और नृत्य की रेशमी झालरों से सजा जीवन का रंगमहल यहाँ अलग ही चहक-महक से भरा है।

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