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मांगलिक अवसरों पर किया जाता है दुलदुलघोड़ी नृत्य

संभावना गतिविधि में दुलदुल घोड़ी एवं ढिमरियाई नृत्य की प्रस्तुति हुई

भोपाल। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में नृत्य,गायन एवं वादन पर केंद्रित गतिविधि “संभावना” का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें 3 अगस्त, 2025 को परमानंद केवट एवं साथी, विदिशा द्वारा ढिमरियाई नृत्य एवं राजमणि तिवारी एवं साथी, रीवा द्वारा दुलदुलघोड़ी नृत्य की प्रस्तुति दी गई।

गतिविधि में परमानंद केवट एवं साथी, विदिशा द्वारा ढिमरियाई नृत्य की प्रस्तुति दी गई। ढिमरियाई बुन्देलखण्ड की ढीमर जाति का पारम्परिक नृत्य-गीत है। इस नृत्य में मुख्य नर्तक हाथ में रेकड़ी वाद्य की सन्निधि से पारम्परिक गीतों की नृत्य के साथ प्रस्तुति देते हैं। अन्य सहायक गायक-वादक मुख्य गायक का साथ देते हैं।

राजमणि तिवारी एवं साथी, रीवा द्वारा दुलदुलघोड़ी नृत्य प्रस्तुत किया गया। बघेलखंड का दुलदुलघोड़ी नृत्य एक पारंपरिक लोकनृत्य है, जो उत्साह और उत्सव का प्रतीक है। यह नृत्य विवाह जैसे मांगलिक अवसरों पर किया जाता है, जहां एक कलाकार लकड़ी की घोड़ी पहनकर बारात के आगे-आगे चलता है और मनोरंजन करता है। यह नृत्य लोकगीतों और पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ किया जाता है, जो इसे एक खास पहचान देता है। नर्तक घोड़ी के आकार का पहनावा पहनता है, सिर पर पगड़ी बांधता है और चेहरे पर रंग लगाता है। इस नृत्य में हारमोनियम, झांझ, मजीरा और ढपला, ढोलक जैसे वाद्य यंत्रों का उपयोग किया जाता है।

मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय परिसर में प्रत्येक रविवार दोपहर 02 बजे से आयोजित होने वाली गतिविधि में मध्यप्रदेश के पांच लोकांचलों एवं सात प्रमुख जनजातियों की बहुविध कला परंपराओं की प्रस्तुति के साथ ही देश के अन्य राज्यों के कलारूपों को देखने समझने का अवसर भी जनसामान्य को प्राप्त होगा।

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