यतीन्द्र अत्रे
भारत परंपराओं का देश है, घर में कोई उत्सव हो, पर्व हो या तीज त्यौहार हो, इसकी झलक यहां साफ तौर पर देखी जा सकती है। इन सब के पीछे आधार होता है- पौराणिक कथाएं, शास्त्रों के प्रमाणित तथ्य और हमारे पूर्वज। जैसा हमारे पूर्वज करते आए हैं आगे पीढ़ियां भी इस विरासत को आगे बढ़ते हुए दिखाई देती हैं। जैसी साड़ी दादी पहना करती थी पोती का भी प्रयास होता है वैसी ही साड़ी वह भी पहने,पिता यदि धोती कुर्ता और टोपी पहन या पगड़ी बांध पूजा में बैठते हैं तो पुत्र भी उत्सव, पर्व में वैसा ही दिखाई देने का प्रयास करता है। कुछ अपवाद स्वरूप छोड़ दें तो अधिकतर परिवारों में यह परंपरा आज भी देखने मिल जाती है। भगवान राम माता सीता और लक्ष्मण के साथ लंका विजय के उपरांत जब अयोध्या लौटे तो उनके स्वागत के लिए अयोध्या वासियों ने नगर एवं आसपास के क्षेत्र में असंख्य दीप जलाकर दीप पर्व मनाया। तब से वर्तमान तक बिना अवरोध हम दीपावली यानी कि दीप उत्सव इसी रूप में मनाते आ रहे हैं।
एक विदेशी का स्वाभाविक सा प्रश्न था आप लोग एक जैसा त्यौहार प्रतिवर्ष मानते हैं उबाऊ पन की अनुभूति नहीं होती है ? भारतीय ने प्रतिउत्तर देते हुए कहा- हमारे यहां त्यौहार तो वही होते हैं लेकिन उत्साह प्रतिवर्ष नया होता है? सचमुच दातों तले अंगुली दबाने वाला उत्तर था, कहां से लाते हैं हम यह उत्साह महीनों पूर्व से दीपावली की प्रतीक्षा होती है। बारिश के बाद रंगाई पुताई आरंभ हो जाती है। फिर बच्चों की छुट्टियां जैसे ही लगती हैं,भारतीय परिवारों के घरों से संजोरी, गुजिया बालूशाही की खुशबू आना आरंभ हो जाती है। रंगोली के सतरंगी रंग और रात्रि में रंग बिरंगी रोशनी इस पर्व में चार चांद लगा देते हैं। फिर शुरू होता है मेहमानों के आने का सिलसिला। प्रतिवर्ष की भांति उत्साह में कमी ना हो वरन यह सोच होती है कि क्या नया हम इस दिवाली करने वाले हैं। हमारी पसंद के परिधानों से तो हम सजे होंगे, मिठाई भी पसंद की होगी। इस दिवाली फिर क्या हम नया करेंगे जो दूसरों के मन को भा जाए? मस्तिष्क में हमारे क्या विचार होंगे यह दूसरा कैसे जान सकता है लेकिन कुछ कुछ अनुमान तो लगाया ही जा सकता है … सामान्य तौर पर कहें तो देश में होली,दशहरा हो दिवाली हो या फिर अन्य कोई यह सब पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक कहे जाते हैं। घर में कोई पूजा-अर्चना हो या हवन, पंडित जी कोई एक बुराई छोड़ने का संकल्प दिलाते हैं। विचार करें दीपावली भी एक अच्छा अवसर होगा। परंपरा के अनुसार हमारे यहां अतिथि को देव तुल्य कहा गया है। दीपावली पर अतिथि आएंगे तब मुस्कुराते हुए मृदु भाषा में उनका स्वागत करना एक अच्छी पहल होगी। अच्छा होगा कि उस दौरान मोबाइल फोन से दूरी बनाकर रखें। लाभ यह होगा कि आप अधिक से अधिक उनसे वार्तालाप कर सकेंगे। घर में एक मिठाई कम होगी लेकिन हमारे शिष्टाचार इस तरह से उनका दिल जीत लेंगे, रही बात हमारे व्यंजनों की तो विश्वास रखें हम भारतीयों की नमक रोटी में भी गजब का स्वाद होता है। यह भी विश्वास रखें कि इस समय भारतीय परिधानों की विश्व में कोई होड़ नहीं है, सुंदर तो होते ही हैं,उन्हें पहनने में गर्व की अनुभूति भी होती है। विदेशों में भी जब भारतीय किसी विशेष अवसर पर एकत्रित होते हैं तब वे ही सबके बीच आकर्षण का केंद्र होते हैं। क्योंकि भाषा के अतिरिक्त आज परिधान भी हमारी पहचान हैं। मिलावटी वस्तुओं से सावधान रहने की आवश्यकता होगी ज्यादा अच्छा होगा मिठाइयां घर में ही बनाएं उससे लाभ यह होगा कि परिवार के सदस्य उसे समय भी साथ होंगे उनके स्नेह और साझेदारी का प्रभाव मिठाइयों के स्वाद में भी होगा। अंत में सबसे जरूरी बात- बच्चे जब पटाखे, फुलझड़ी जलाएं तब इस बात का ध्यान हो कि वे अकेले ना हो। विश्व की प्रमुख शक्तियों के बीच आज प्रधानमंत्री मोदी ने नवाचार के माध्यम से अपनी एक अलग पहचान बनाई है, उसके परिणाम भी नज़र आ रहे हैं। रूस से दोस्ती बरकरार है वहीं चीन भी अब सेनाएं पीछे हटाने हेतु सहमत हैं। आइए इस दिवाली हम भी कुछ नया करें नवाचार से दीपावली मनाए।
मो. 9425004536
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