रंगमंच तो होगा पर मंच पर आलोक नही होंगे

रंगमंच में जब पर्दा उठता है और उद्घोषणा के बाद शो आरंभ हो जाता है, जब पर्दा गिरता है तब शो की समाप्ति पर दर्शकों की तालियों की गड़गड़ाहट कलाकारों का उत्साहवर्धन करती दिखाई देती है। दर्शक नाटक की कहानी के कुछ अंश स्मृति में और उनमें से निकला संदेश अपने साथ लेकर जाते हैं। प्रायःयह क्रम रंगमंच में चलता रहता है, लेकिन किसी कलाकार के जीवन का पर्दा गिर जाए, लाइट्स आफ हो जाए तब क्या प्रतिक्रिया होती है यह दृश्य मैंने  गत मंगलवार को प्रत्यक्ष देखा जब एनएसडी गोल्ड मेडलिस्ट, मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय के पूर्व निदेशक और रंग कर्मियों के चहेते आलोक चटर्जी की अंतिम यात्रा के सम्मिलित हुआ। वहां असंख्य आंखें नम थी, कईं रंगकर्मी अपने आंसू बहने से रोक नहीं पा रहे थे। वह खनकती आवाज उस दिन हमेशा के लिए खामोश हो गई। अनेक शिष्यों के गुरु आलोक उन्हें छोड़ आस्ताचल की ओर चल दिए। किसी को विश्वास नहीं हो रहा था, उन सबका मानना था कि अभी उन्हें बहुत कुछ करना था, उनके साथ समय भी बिताना था लेकिन नियति को यही मंजूर था, और उनके नट सम्राट उन्हें छोड़कर चले गए …!

मंच पर हंसते-खेलते कलाकार अपने सहज अभिनय से जिस तरह दर्शकों की तालियां बटोरते हैं। एक सामान्य प्रश्न हो सकता है कि मंच से परे उनका जीवन भी क्या वैसा ही होता है ? तो जानने वाले उत्तर यह देंगे कि, वे सभी भी आम व्यक्तियों जैसे ही होते हैं, लेकिन उनमें कुछ कर गुजरने की जिद और समर्पण उन्हें हमसे अलग करती है। रंगमंच में अक्सर यह कहा जाता है की ‘show must go on’ यानी कि आम जीवन में समस्याएं आती रहेगी लेकिन रंगमंच कभी नहीं रुकेगा।  ठीक ऐसे ही आलोक भी थे।  रंगमंच के प्रति उनका समर्पण वह जुनून, जिसके सब कायल थे। निधन के कुछ दिन पूर्व अपने मित्र जानेमाने आर्ट डायरेक्टर जयंत देशमुख से उनका यह कहना कि कोई ऐसा नाटक लेकर आओ जो मैं व्हीलचेयर से अभिनीत कर सकूं, ऐसा जज्बा परमात्मा कुछ विरले लोगों में ही समाहित करता होगा। इससे समझ आता है कि अपने संघर्षशील जीवन में भी वे रंगमंच को सबसे ऊपर अनुभव करते थे।  अन्य रंगकर्मियों से अपने चिर परिचित अंदाज में बात करना सभी को संभवत वर्षों याद रहेगा। अपनी जिद, उनका खनकती आवाज का धनी होना,जो कह दिया वही करना।  ऐसी कुछ बातें, घटनाएं जो आलोक को दूसरों से अलग करती हैं उनमें उनका वह संकल्प भी है जिसमें अवसर मिलते हुए भी उन्होंने फिल्मों में जाने से इनकार किया और जीवन भर रंगमंच की सेवा और रंग कर्मियों के बीच में ही रहना स्वीकारा।

मो.: 9425004536

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