डाॅ. योगिता राठौड़
‘‘जीवन का ये बसंत, खुशियाँ दे अनंत।
प्रेम और उत्साह से भर दे जीवन में नए रंग’’
बसंत पंचमी हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ महीने की शुक्ल पक्ष की पांचवीं तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व मुख्य रूप से भारत, नेपाल और बांगलादेश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। बसंत पंचमी का विशेष संबंध बसंत ऋतु से होता है, जो फूलों और हरियाली का मौसम होता है। इस दिन को माँ सरस्वती के पूजन और विद्या के महत्व के रूप में भी मनाया जाता है। सरस्वती हिंदू धर्म में ज्ञान, संस्कृति और कला की देवी मानी जाती हैं। वह विद्या, बुद्धि और कला की प्रतीक है, और उसकी पूजा करने से ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति होती है। बसंत पंचमी का त्यौहार न केवल प्रकृति के खिलने का प्रतीक है, बल्कि यह जीवन में नए रंग और ऊर्जा का संचार करने का समय भी है। इस दिन को लेकर खास मान्यता है कि इस दिन माँ सरस्वती की पूजा करने से ज्ञाान और बुद्धि की प्राप्ति होती है। सरस्वती पूजा के साथ ही विद्यार्थियों द्वारा अपनी किताबों और कलमों को पूजा जाता है, ताकि उनका अध्ययन और मेहनत सफल हो। अनेक स्थान पर इस के दिन से पट्टी पूजा करके विद्यारंभ भी कार्रवाई जाती है। बसंत पंचमी का त्यौहार खासकर पीले रंग से जुड़ा होता है। लोग पीले वस्त्र पहनते हैं, पीले रंग के पकवान बनाते हैं और पीले फूलों से पूजा करते हैं। पीला रंग बसंत ऋतु की तरह उन्नति, समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। इस दिन को लेकर कई स्थानों पर मेला और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं। भारत के विभिन्न हिस्सों में बसंत पंचमी का उत्सव अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। कुछ जगहों पर लोग पारंपरिक नृत्य और संगीत प्रस्तुत करते हैं, तो कहीं लोग इस दिन को रवींद्रनाथ ठाकुर (रवींद्रनाथ ठाकुर के जन्म स्थान) में श्रद्धा से मनाते हैं। इस प्रकार, बसंत पंचमी एक महत्वपूर्ण हिन्दू पर्व है जो प्रकृति, ज्ञान और संस्कृति का संगम है। यह हमें जीवन में नए सिरे से ऊर्जा और सकारात्मकता को अपनाने का संदेश देता है। बसन्त पंचमी एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जो ज्ञान, संस्कृति और कला के प्रति समर्पित है। यह त्योहार हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत को समझने और उसका सम्मान करने का अवसर प्रदान करता है। बसंत पंचमी का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक भी है। यह त्योहार ज्ञान, संस्कृति और कला के प्रति समर्पित है, और इसे मनाने से हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत को समझने और उसका सम्मान करने का अवसर मिलता है।
(लेखक के ये अपने विचार हैं।)
प्राचार्य
माँ नर्मदा कालेज
आफ एजुकेशन धामनोद
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