Advertisement

हिंदी को वैश्विक स्तर पर ले जाने के पक्षधर डॉ कमलकिशोर गोयनका

(स्मृति शेष)

संदीप सृजन

मुंशी प्रेमचंद पर गहरे शोध अध्ययन के लिए विश्व भर में पहचाना जाने वाले डॉ. कमल किशोर गोयनका हिंदी साहित्य के एक ऐसे सशक्त हस्ताक्षर थे, जिन्होंने अपनी विद्वता, शोध, और लेखन से हिंदी साहित्य को न केवल समृद्ध किया, बल्कि इसे वैश्विक मंच पर एक नई पहचान भी दिलाई। उनका नाम विशेष रूप से मुंशी प्रेमचंद के साहित्य के अध्ययन और विश्लेषण के साथ जुड़ा हुआ है, लेकिन उनके योगदान का दायरा इससे कहीं व्यापक था। प्रेमचंद पर उनके गहन शोध के साथ-साथ प्रवासी हिंदी साहित्य के संकलन और प्रचार में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।

11 अक्टूबर, 1938 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्में श्री गोयनका का परिवार साहित्य और शिक्षा के प्रति विशेष रुझान रखता था, जो उनके व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक सिद्ध हुआ। उनके पिता एक शिक्षक थे, जिन्होंने कमल किशोर में पढ़ाई और ज्ञान के प्रति प्रेम पैदा किया। बचपन से ही वे किताबों के प्रति आकर्षित थे और स्थानीय स्तर पर उपलब्ध साहित्य को पढ़ने में घंटों बिताते थे। उनकी माँ एक गृहिणी थीं, लेकिन उनकी कहानियों और लोककथाओं ने गोयनका के मन में साहित्य के बीज बोए।

बुलंदशहर में उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई, जहाँ उन्होंने हिंदी, संस्कृत, और अंग्रेजी भाषाओं में प्रारंभिक ज्ञान प्राप्त किया। स्कूल के दिनों में ही उनकी रुचि साहित्य की ओर बढ़ने लगी थी, और वे कविताएँ और छोटी-छोटी कहानियाँ लिखने लगे थे। हालांकि, उनकी प्रतिभा को असली दिशा तब मिली जब वे उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली आए। दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने के बाद उनकी साहित्यिक यात्रा ने एक नया मोड़ लिया। यहाँ उन्होंने हिंदी साहित्य में स्नातक, परास्नातक, एम.फिल., पीएच.डी., और अंततः डी.लिट् की उपाधियाँ प्राप्त कीं। उनकी शैक्षिक उपलब्धियाँ उनके कठिन परिश्रम और लगन का परिणाम थीं।

दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान कमल किशोर गोयनका का परिचय मुंशी प्रेमचंद के साहित्य से हुआ। प्रेमचंद की रचनाएँ जैसे गोदान, गबन , कफ़न और ईदगाह पढ़कर वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने प्रेमचंद के साहित्य को अपने शोध का विषय बनाने का निर्णय लिया। प्रेमचंद की कहानियों में सामाजिक यथार्थ, गरीबी, शोषण, और मानवीय संवेदनाओं का जो चित्रण था, वह गोयनका के मन को गहरे तक छू गया। उनकी पीएच.डी. का शोध प्रेमचंद की कहानियों के कालक्रम और शिल्प पर केंद्रित था, जो बाद में उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तक का आधार बना।

दिल्ली विश्वविद्यालय में उनके गुरुओं ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें शोध के लिए प्रोत्साहित किया। प्रोफेसर नामवर सिंह और अन्य विद्वानों के मार्गदर्शन में गोयनका ने साहित्यिक विश्लेषण की बारीकियाँ सीखीं। उनकी डी.लिट् की थीसिस प्रेमचंद के उपन्यासों के सामाजिक संदर्भों पर आधारित थी, जिसमें उन्होंने यह दर्शाया कि प्रेमचंद की रचनाएँ केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज के दर्पण के रूप में कार्य करती हैं।

डॉ गोयनका ने अपने शैक्षिक जीवन का अधिकांश समय दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में बिताया। लगभग 40 वर्षों तक उन्होंने छात्रों को हिंदी साहित्य पढ़ाया और शोध के लिए प्रेरित किया। उनके अध्यापन का तरीका अनूठा था। वे केवल किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं रहते थे, बल्कि साहित्य को जीवन से जोड़कर समझाते थे। उनके छात्र आज भी उनकी कक्षाओं को याद करते हैं, जहाँ वे प्रेमचंद की कहानियों के पात्रों को जीवंत कर देते थे।

उन्होंने केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल और केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा में उपाध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। इन संस्थानों के माध्यम से उन्होंने हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार और शिक्षण में योगदान दिया। वे हिंदी को वैश्विक स्तर पर ले जाने के पक्षधर थे और इसके लिए कई सेमिनारों और कार्यशालाओं का आयोजन किया। उनके प्रयासों से हिंदी साहित्य को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पहचान मिली।

डॉ. गोयनका का सबसे बड़ा योगदान प्रेमचंद के साहित्य पर उनका शोध कार्य है। उन्होंने प्रेमचंद की रचनाओं का कालक्रमानुसार अध्ययन किया और इसे व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया। उनकी पुस्तक “प्रेमचंद की कहानियों का कालक्रमानुसार अध्ययन” इस क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कृति मानी जाती है। इस पुस्तक में उन्होंने प्रेमचंद की 300 से अधिक कहानियों को उनके रचनाकाल के आधार पर वर्गीकृत किया और प्रत्येक कहानी के सामाजिक संदर्भ को विश्लेषित किया। इस कार्य के लिए उन्हें 2014 में व्यास सम्मान से सम्मानित किया गया। उनकी अन्य शोध कृतियों में “प्रेमचंद के उपन्यासों का शिल्प विधान” (1974) इस पुस्तक में गोयनका ने प्रेमचंद के उपन्यासों की संरचना और शैली का विश्लेषण किया। “प्रेमचंद विश्वकोश”* (1981, दो खंड) यह प्रेमचंद के जीवन और साहित्य पर एक व्यापक संदर्भ ग्रंथ है। “प्रेमचंद:चित्रात्मक जीवनी” (1986) इसमें प्रेमचंद के जीवन को चित्रों और दस्तावेज़ों के साथ प्रस्तुत किया गया। “प्रेमचंद की हिंदी-उर्दू कहानियाँ ” (1990) इस संकलन में प्रेमचंद की द्विभाषी रचनाओं को एकत्र किया गया।

डॉ गोयनका ने प्रेमचंद पर 22 से अधिक पुस्तकें लिखीं और संपादित कीं। उनके शोध ने प्रेमचंद के साहित्य को नए दृष्टिकोण से देखने की प्रेरणा दी। उन्होंने प्रेमचंद के मूल दस्तावेज़, पत्र, डायरी, और पांडुलिपियों का संग्रह किया, जो लगभग 3000 वस्तुओं का एक दुर्लभ संग्रह है। इस संग्रह के आधार पर उन्होंने प्रेमचंद की जीवनी को कालक्रमानुसार प्रस्तुत किया, जो हिंदी साहित्य में पहली बार हुआ।

प्रेमचंद के अलावा, डॉ गोयनका ने प्रवासी हिंदी साहित्य पर भी महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होंने प्रवासी लेखकों की रचनाओं को एकत्र किया, उनका अध्ययन किया, और उन्हें प्रकाशित किया। उनकी छह पुस्तकें और तीन प्रतिनिधि संकलन इस क्षेत्र में उनके योगदान को दर्शाते हैं। प्रवासी साहित्य को मुख्यधारा में लाने और उसे हिंदी साहित्य का अभिन्न अंग बनाने में उनकी भूमिका सराहनीय रही। उन्होंने मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम, और अन्य देशों में बसे हिंदी लेखकों के कार्यों को प्रोत्साहित किया।

डॉ.गोयनका की लेखनी केवल प्रेमचंद और प्रवासी साहित्य तक सीमित नहीं थी। उन्होंने अन्य लेखकों पर 20 पुस्तकें और 350 से अधिक शोध-पत्र और लेख लिखे। उनकी रचनाओं में विविधता थी—वे कविता, कहानी, उपन्यास, और समीक्षा सभी पर लिखते थे। साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित “प्रेमचंद ग्रंथावली” के संपादन में भी उनका योगदान रहा। उनके लेख और शोध-पत्र हिंदी साहित्य की विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए, जो आज भी शोधकर्ताओं के लिए संदर्भ सामग्री के रूप में उपयोगी हैं।

कमल किशोर गोयनका को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाज़ा गया। इनमें व्यास सम्मान,हिंदी अकादमी (दिल्ली) सम्मान, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान सम्मान, मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी सम्मान,केंद्रीय हिंदी संस्थान (आगरा) सम्मान प्रमुख है। प्रेमचंद शताब्दी वर्ष 1980 से लेकर अपने जीवन के अंत तक, वे देश-विदेश के 70 से अधिक नगरों, विश्वविद्यालयों, और साहित्यिक संस्थानों में सम्मानित हुए। ये सम्मान उनके अथक परिश्रम और साहित्य के प्रति समर्पण का प्रमाण हैं।

कमल किशोर गोयनका का व्यक्तित्व सादगी, विद्वता, और मानवता का संगम था। वे एक समर्पित शिक्षक, शोधकर्ता, और लेखक होने के साथ-साथ अपने परिवार और समाज के प्रति भी संवेदनशील थे। उनका विवाह एक शिक्षित और सहृदयी महिला से हुआ, जो उनके साहित्यिक कार्यों में उनकी सहयोगी रही। उनके बच्चे भी शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय हैं, जो उनके प्रभाव को दर्शाता है।

31 मार्च, 2025 को जैसे ही उनके निधन की ख़ब़र सामने आई, सम्पूर्ण हिंदी साहित्य जगत को गहरा आघात पहुँचाया। उनका निधन हिंदी साहित्य के लिए एक अपूरणीय क्षति है। डॉ कमल किशोर गोयनका हिंदी साहित्य के एक  ऐसे नक्षत्र थे, जिन्होंने अपने ज्ञान, शोध, और लेखन से इस क्षेत्र को प्रकाशित किया। प्रेमचंद के साहित्य को समझने और उसे नई पीढ़ी तक पहुँचाने में उनकी भूमिका अभूतपूर्व रही। प्रवासी हिंदी साहित्य को मुख्यधारा में लाने और हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में उनका योगदान भी अविस्मरणीय है। उनकी पुस्तकें, शोध-पत्र, और संग्रह आज भी हिंदी साहित्य के अध्ययन के लिए एक अमूल्य निधि हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्चा साहित्यकार वही है, जो अपनी लेखनी से समाज को दिशा दे और उसे समृद्ध करे। गोयनका का नाम हिंदी साहित्य के इतिहास में हमेशा अमर रहेगा। विनम्र श्रद्धांजलि ।

संपादक- शाश्वत सृजन

ए-99 वी.डी. मार्केट, उज्जैन 456006

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *