कहते हैं कि पिता के जूते जब पुत्र के पैरों में पहने जाने लगे तो एक सुलझे पिता द्वारा पुत्र से मित्रवत व्यवहार आरंभ हो जाता है। माता-पिता को प्रथम गुरु माना जाता है, जब कभी छोटी चोट लगती है तो मुंह से अनायास ही उई मां निकल जाता है, लेकिन जब बड़ी घटना होती है तब बापरे शब्द मुंह से उच्चारित होता है। कईं ऐसे अनुभव सामने आए हैं जिसमें सख्त, अनुशासित एवं क्रूर दिखने वाले पिता जब नहीं रहे तब उनकी संवेदनशीलता को महत्व दिया गया है। क्या पिता सचमुच संवेदनशील होते हैं ? गुरु के समान एक पिता भी अपने पुत्र को ऊंचाइयों पर देखना पसंद करता हैं। पिता संतान के लिए वह सब करता हैं जो स्वयं के लिए संभव नहीं कर पाया हो। अंगुली पकड़कर चलना सिखाना और कांधे पर बैठकर छोटे-बड़े समारोह से दो चार होना, यह प्रत्येक पुत्र या पुत्री का सौभाग्य होता है। बचपन में प्रायःबच्चों से यह कहते हुए सुना हैं कि मेरे पिता हीरो है, लेकिन जिंदगी की भाग दौड़ में उन स्मृतियों को भूला दिया जाता हैं जिन के सानिध्य में हम पले-बढ़े होते हैं। कई ऐसे परिवारों के उदाहरण मिलते हैं जहां कहा जाता है कि यह सब तो आपकी डयूटी में आता है। वैसे भी आपने हमारे लिए किया ही क्या है? वाक्य के भाव निश्चित रूप से क्रोधित कर सकते हैं। प्रश्न विचारणीय भी है, लेकिन यह भी विचार करें कि क्या हमारे जीवन में असीमित उपलब्धियों का होना उनकी उपस्थिति के बिना संभव था। सच्ची कहानियों और समाचार पत्रों के माध्यम से यह यक्ष प्रश्न सामने आया है जिसमे एक पिता द्वारा अपना दर्द उजागर हुआ है जहां पिता द्वारा एक संयुक्त परिवार का मुखिया होने के नाते 8 से 10 बच्चों तक का पालन पोषण बखूबी किया गया, वहीं उन्हीं 8 से 10 बच्चों को एक पिता की वृद्धावस्था भारी पड़ती है। परिणाम यह होता है कि जीवन में सब कुछ देने वाले माता पिता वृद्ध आश्राम में दिखाई देते हैं। हम संस्कारित हैं तो माता पिता के द्वारा और यदि असंस्कारित हैं तो निश्चित रूप से उनकी सीख की कहीं अवहेलना हुई होगी। ओशो ने एक जगह लिखा है कि मेरे जीवित रहते मुझे भला-बुरा कह लेना मेरे ना रहने के बाद तो मैं भी सुनने योग्य नहीं रहूंगा। तस्वीरों पर पुष्प अर्पित करना हमारी परंपरा रही है लेकिन क्या बुरी नियत से गंगा में डुबकी लगाई जाए तब भी हमारे पाप धुल जाएंगे ?
कहते हैं जब जागे तभी सवेरा, माता जन्म देती है तो पिता जीवन संवारते हैं अतः दोनों हमारे पूजनीय हैं। उनके रहते हुए उन्हें यथा योग्य सम्मान दें उनकी खुशियों में सम्मिलित हों । हो सकता है वे हमारी अपेक्षाओं के अनुसार खरे ना हों लेकिन यह भाव हमेशा बोध रहे कि वे हैं तो हम हैं। मो.: 9425004536
पुत्र को उँचाइयों पर देखना पसंद करते है पिता

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